Dainik India Darpan's Blog [दैनिक इंडिया दर्पण]
Thursday 4 December 2014
Monday 17 November 2014
आओ एक दीप जलाएं
आओ एक दीप जलाएं
एक बार फिर दिपावली का त्योहार मनाने हम जा रहे हैं दीपावली के छ: दिन बाद हम डूबते सूर्य को नमस्कार कर अगले दिन उगते सूर्य को नमस्कार कर छठ त्योहार मनाएंगे। इसी कड़ी में छ: नवम्बर को गुरूनानक जयन्ती भी मनाने जा रहे हैं, सभी त्योहार हमें मन के अंधकार को दूर कर संतोष की कला सिखाता है ताकि हम सुख व शांति प्राप्त कर मुक्ति पाने के लिए प्रार्थना कर सकें।क्या वास्तव में हम ऐसा कर पा रहे हैं। आत्ममंथन करें, आज फिर एक बार हमारे सामने एक सुनहरा अवसर है गणेश पूजा, श्राद्ध, दुर्गापूजा, दशहरा, बकरीद के बाद दीपावली, छठ, और गुरूनानक जयन्ती सभी बार-बार मुझे यह बताने का प्रयास कर रहा है कि सत्य की सदा जय होती है। रावणी शक्ति का हमेशा अंत होता है, अंधकार पर, सदा प्रकाश विजय प्राप्त करती है लेकिन आज भौतिक पदाथोर्ं की येन केन प्राप्ति के लिए हम अंधा होकर दिन-रात लगे हुए हैं। हमें इतना भर भी सोचने का समय नहीं है कि जो कुछ भी हम कर रहे हैं क्या वह उचित भी है? हम यह भी भूल चुके हैं कि हम जो कुछ दिन-रात संग्रह कर रहे हैं, वह सब कुछ, इसी जगत में छोड़कर जाना होगा। धन कमाना बुरा नहीं है लेकिन अंधा होकर धन अर्जित करना बिल्कुल बुरा है। मनुष्य को जीवन में तीन अवस्था से गुजरना पड़ता है, बचपन, जवानी और बुढ़ापा, बचपन में ब्रहमचर्य का पालन करते हुए नाना प्रकार के सद्विद्या रूपी धन अर्जित करना चाहिए। यह धन हमें जीवन के अन्तिम काल तक हमें राह दिखाता है। जवानी में परिश्रम रूपी धन अर्थात कर्मधन अर्जित करना चाहिए, इस धन से अपना, अपने परिवार का, अपने वंशजों का ख्याल रखते हुए जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए। बुढ़ापे में आहार विहार का संयम के साथ प्रभू भजन रूपी धन अर्जित करना चाहिए जो हमें मोक्ष प्राप्त करने में सहायक हो। नीतिकार शिरोमणि भर्तृहरि ने कहा है-
भोगा न भुक्ता, वयमेव भुक्ता, स्तपो प तप्तं वयमेव तप्ता।
कालो न यातो, वयमेव याता: स्तृष्णा न जीर्णा, वयमेव जीर्णा:।
भोगों के भोगते जाने से भोगों के प्रति भूख उतरोत्तर बढ़ती जाती है। जिस व्यक्ति को जीवन में संतोष नहीं आता, उसकी जिंदगी का अंत बुरा होता है। कामना की पूर्ति से एक और कामना पैदा हो जाती है हिटलर, नेपोलियन और सिकन्दर जैसे योद्धाओं को जब बेसब्री के चश्में लगे तो उन्होंने पूरे विश्व को आपने अधीन करना चाहा, रावण को जब भोग विलास की कामनाओं ने बेसब्र किया तो उसने श्रीराम से बैर ले लिया और परिणाम क्या हुआ यह बताने की आवश्यकता नहीं है।
जब संतुष्टि आती है तो मनुष्य के पास उपलब्ध विशाल वैभव राशि भी कोई मायने नहीं रखती। कहा भी गया है-
गजधन, गऊधन, बाजी धन और रत्न धन खान, जब आवे संतोष धन, सब धन धूलि समान।
संतोष मन की एक ऐसी अवस्था है, जिसकी प्राप्ति पर संसार के सारे धन धूल के समान लगते हैं। संतोष धन प्राप्त करने के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा तृष्णा है और जब तक आप तृष्णा पर विजय प्राप्त नहीं कर लेते तब तक आप संतोष धन नहीं प्राप्त कर सकते हैं। विभिन्न धमोर्ं में त्योहार का महत्व यही बताता है कि आप तृष्णा पर विजय प्राप्त कर संतोष धन प्राप्त करें लेकिन तृष्णा पर विजय पाने की जगह हम मृगतृष्णा में भटकते रहते हैं। जिस प्रकार रेगिस्तान में मृग पानी की चाह में इधर-उधर भटक कर अंत में अपने प्राणों से हाथ धो बैठता है, उसी प्रकार इस आधुनिक दुनिया में आधुनिकता की चाह में मानव दर-दर भटक रहा है और अंतत: सभी कुछ यहीं छोड़ जाता है। आईये, इस दीपावली, छठ, गुरूपर्व के अवसर पर एक दीप हम, संतोष प्राप्ति के लिए जलाएं, जो तृष्णा रूपी अंधकार से हमंे। मुक्ति दिलाएं। भारत अध्यात्म का देश है, और जो अध्यात्म के मार्ग पर चलकर तृष्णा पर विजय प्राप्त करने में सफल हो जाएगा, उसे मोक्ष तो अवश्य मिलेगी वर्ना तृष्णा हमें अनंत जन्मों तक जीवन मृत्यु के चक्र में घेरे रखेगा और हम यूं ही भटकते रहेंगे।
इन्हीं शब्दों के साथ आप सभी को दीपावली, छठ, गुरूपर्व की हार्दिक बधाई।
ललित 'सुमन'
Saturday 6 September 2014
कालाधन
रोटी -कपड़ा और माकन के
चक्रव्यूह में फंसकर सारा जीवन ख़त्म किया
एक पल भी यह न सोचा
मेरे मातृभूमि का क्या हुआ।
देश की खातिर जो शहीद हुए
रोटी- कपड़ा और माकन के
चक्रव्यूह में उलझ कर
उनको भी हम भूल गए।
क्रंदन सुनो, भारत माता की
रो- रो कर ,वह पूछ रही
सत्ता -शासन मिलते ही तुम
भारतवासी को क्यों भूल गये
देश को लूटने वाला ,आज भी
आजाद कैसे घूम रहे।
कालाधन सिर्फ धन नहीं है
जो सिर्फ वापिस आएगा
जिसने भी भारत के वैभव को लूटा
उसको तुम फांसी दो
हंस सके हर भारतवासी
ऐसी तुम आजादी दो .......
भाई -भाई को प्रेम करें
दौलत की खातिर न ,हत्या हो
ऐसा वैभवशाली,भारत बनाओ
जहाँ साथ - साथ सब
गीता -कुरान -बाइबिल -ग्रन्थ पढता हो
ऐसा तुम भारत निर्माण करो ,जहाँ एक साथ सब
गीता -कुरान -बाइबिल -ग्रन्थ पढता हो ......
ललित "सुमन "
चीफ एडिटर "दैनिक इंडिया दर्पण "
रोटी -कपड़ा और माकन के
चक्रव्यूह में फंसकर सारा जीवन ख़त्म किया
एक पल भी यह न सोचा
मेरे मातृभूमि का क्या हुआ।
देश की खातिर जो शहीद हुए
रोटी- कपड़ा और माकन के
चक्रव्यूह में उलझ कर
उनको भी हम भूल गए।
क्रंदन सुनो, भारत माता की
रो- रो कर ,वह पूछ रही
सत्ता -शासन मिलते ही तुम
भारतवासी को क्यों भूल गये
देश को लूटने वाला ,आज भी
आजाद कैसे घूम रहे।
कालाधन सिर्फ धन नहीं है
जो सिर्फ वापिस आएगा
जिसने भी भारत के वैभव को लूटा
उसको तुम फांसी दो
हंस सके हर भारतवासी
ऐसी तुम आजादी दो .......
भाई -भाई को प्रेम करें
दौलत की खातिर न ,हत्या हो
ऐसा वैभवशाली,भारत बनाओ
जहाँ साथ - साथ सब
गीता -कुरान -बाइबिल -ग्रन्थ पढता हो
ऐसा तुम भारत निर्माण करो ,जहाँ एक साथ सब
गीता -कुरान -बाइबिल -ग्रन्थ पढता हो ......
ललित "सुमन "
चीफ एडिटर "दैनिक इंडिया दर्पण "
Thursday 4 September 2014
क्या दिया है इस देश को
जन्म लिया है जिस भूमि पर
उस मातृ भूमि का ,सम्मान करो
अपने अंदर की इंसानियत जगाकर
राष्ट्र का निर्माण करो
क्या पाया है इस देश से
इस की चिंता मत किया करो
क्या दिया है इस देश को
इसका सच्चे दिल से मनन करो
धन्य है ये भारत भूमि
जहा तुमने जन्म लिया
अपने लिए अबतक जिए
फिर भी भारतीय होने का सम्मान मिला
राम -कृष्ण ,गुरुगाबिँद ,बुद्ध,महावीर
इसी धरती पर अवतरित हुए
गंगा - यमुना -सरस्वती और कबेरी
इस पवन धरती पर कदम धरे
एक अरब से अधिक आबादी जिसकी
उस भारत माता को फिर क्यों चिंता हो
दुश्मन को सबक सिखाने के लिए
एक सपूत ही काफी है
तुमको यह तय करना है दोस्तों
देश की खातिर कैसे लड़ना है ,मातृ भूमि की
रक्षा के लिए ,तुम्हे कैसे मारना है
जो आया है ,वह एक दिन जायेगा
देश की खातिर जो लड़ेगा
वही भारत माता का
सच्चा सपूत कहलायेगा।
ललित "सुमन"
चीफ एडिटर "दैनिक इंडिया दर्पण "
जीवन का उद्देश्य
ढूंढ रहा हूँ अपने जीवन का उद्देश्य
जिस किसी से भी मिलता हूँ
वह एक नया मार्ग बतलाता है
उसे यह नहीं पता ,मंजिल कैसे पाया जाता है ,
अब तक सभी ने ,दौलत का महत्व बताया ,
दौलत के बल पर,शोहरत का रहस्य बताया ,
जीवन का वास्तविक उद्देश्य क्या है
इस पर उनकी ख़ामोशी ,साफ बताता है
नहीं पता इन्हे जीवन का क्या है उद्देश्य।
अनगिनत लोगों से पुछ चुका हूँ
जीवन का क्या हो उद्देश्य
कोई कहता ,परिवार ,कोई कहता प्रदेश
कोई बतलाता राष्ट्र ,तो कोई बतलाता विदेश
अकस्मात मेरे मन में ,यह ख्याल आया
मैने कलम उठाया और लिख डाला
यह सन्देश ,रोटी कपड़ा और माकन तो
मिल जायेगा ,अपने कर्मो से
शिक्षा -स्वास्थ-न्याय मिले सभी को
यही हो तुम्हारे जीवन का उद्देश
यही हो तुम्हारे जीवन का उद्देश
ढूंढ रहा हूँ अपने जीवन का उद्देश्य
जिस किसी से भी मिलता हूँ
वह एक नया मार्ग बतलाता है
उसे यह नहीं पता ,मंजिल कैसे पाया जाता है ,
अब तक सभी ने ,दौलत का महत्व बताया ,
दौलत के बल पर,शोहरत का रहस्य बताया ,
जीवन का वास्तविक उद्देश्य क्या है
इस पर उनकी ख़ामोशी ,साफ बताता है
नहीं पता इन्हे जीवन का क्या है उद्देश्य।
अनगिनत लोगों से पुछ चुका हूँ
जीवन का क्या हो उद्देश्य
कोई कहता ,परिवार ,कोई कहता प्रदेश
कोई बतलाता राष्ट्र ,तो कोई बतलाता विदेश
अकस्मात मेरे मन में ,यह ख्याल आया
मैने कलम उठाया और लिख डाला
यह सन्देश ,रोटी कपड़ा और माकन तो
मिल जायेगा ,अपने कर्मो से
शिक्षा -स्वास्थ-न्याय मिले सभी को
यही हो तुम्हारे जीवन का उद्देश
यही हो तुम्हारे जीवन का उद्देश
ललित "सुमन "
चीफ एडिटर "दैनिक इंडिया दर्पण "
Monday 25 August 2014
Tuesday 19 August 2014
"प्रभु आये थे ,दे गए संदेश "
सूर्य भी उगता है ,हमारे इशारे पे
चन्दन भी उगता है हमारे इशारे पे
अस्त होने से पहले ,पुछता है
अस्त हो जाऊं "सुमन ".
हम तो कहते है यारो
हम भी चलते है किसी के इशारे पर
वह खुदा है ,वह ख़ुदा है ........
तुमने देखा है ईश्वर को
क्या तुमने देखा है अल्ला को
तुमने देखा है गुरुगोविंद को
क्या तुमने देखा है ईसा को
यह सिर्फ एक ,विश्वास व आस्था है
फिर तुम्हे अपने
नेक कर्मो पर विश्वास
क्योँ नहीं अपने
कर्म फलो पर
आस्था क्यो नहीं।
मंदिर -मस्जिद,चर्च
गुरुद्वारा के नाम पर
तू लड़ता है
इसी पर तू मरता है
एक दूसरे से करता है तू नफरत
लेकिन सभी प्रभु ने तो प्यार का सुनाया है पैगाम।
क्यों नहीं ,तुम्हे अपने कर्मो पर विश्वास
क्यों नहीं ,रखता 'कर्मफल ' पर आस्था
कब -तक, नफरत फैलाते रहोगे
देवो के अस्तित्व पर ,सवालिया निशान लगाकर
हमने ईश्वर,अल्ला,वाहेगुरु व ईसा को देखो है
वे कह रहे थे तू मेरा यह पैगाम जन-जन तक पंहुचा दे ,
जो जाति -पात ,ऊच-नीच व क्षेत्रीयता फैलता है
वो पुरुषोत्तम राम नहीं ,मानवता का दुश्मन रावण है।
बड़े आहत थे अल्ला वाहे गुरु ईसा
कह रहे थे ,इन्हे मेरा पैगाम सुना दो
हमने प्यार करना दीन दुखियों को
मदद करना ,बीमारो की सेवा करने का
सन्देश दिया था ,अत्याचार ,दोहन ,शोषण
के खिलाफ संघर्ष किया था ,हमने कभी
नफरत का पैगाम नहीं दिया ,फिर
हमारे नमो का इस्तेमाल कर ये मुर्ख
क्योँ मानवता की धज्जियाँ उड़ा रहे है ,
देना उन्हें यह पैगाम अगर पडोसी भूखा
सो रहा है और तुम भले स्वादिष्ट व्यंजन समझ
कर खा रहे हो तो वह भोजन तुम्हारे लिए विष है,
देना उन्हें यह पैगाम अगर कोई लाचार
कराह रहा है और तुम हंस रहे हो तो समझो
तुम मेरा उपहास उड़ा रहे हो ,अगर
वास्तव में तुम्हे ईश्वर -अल्ला -वही गुरु व ईसा
से प्रमे है ,उनपर विश्वास है ,धर्म में आस्था है
तो यह प्रतिज्ञा करो
जाति धर्म ,वर्ग ,भेद के नाम पर हम
नहीं लड़ेंगे ," मानवता " की रक्षा खातिर मरना पड़ा
तो हम मरेंगे ,सत्य -अहिंसा के पथ पर चलकर
प्रभु तेरी चरणों में हम आयेंगे,प्रभु चरणो में अपना
जीवन ,सादाजीवन -उच्च विचार के साथ बिताएंगे।
प्रभु आये और अपना सन्देश दे गये ,हमने
तुम्हे बता दिया ,बाकीं अब तुम्हारी इच्छा।
ललित "सुमन"
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