Wednesday 31 August 2011
कब मिलेगा लोकपाल
Wednesday 17 August 2011
स्वतंत्राता दिवस पर भ्रष्टाचार की छाया
यह एक निर्विवाद सच है कि स्वाध्ीनता दिवस पर इस बार अगर कोई छाया पड़ रही है, तो वह है राष्ट्रव्यापी भ्रष्टाचारियों की छाया। पिछले 64 वर्षों में भ्रष्टाचार के मामलों में जो कुछ सामान्य था, वह 2011 में विशिष्ट होकर उभरा है। इसलिए यह बहुत स्वाभाविक और तार्किक ही है कि लालकिले के प्राचीर से आठवीं बार देश को संबोध्ति करने वाले प्रधनमंत्राी मनमोहन सिंह के भाषण और उसकी पूर्व संध्या पर राष्ट्रपति प्रतिज्ञा पाटिल के राष्ट्र के नाम संबोध्न में भ्रष्टाचार का मुद्दा केंद्रीय होकर उभरा। लेकिन हम देखते आए हैं कि 15 अगस्त पर हमारे प्रधनमंत्राी और राष्ट्रपतियों के भाषण इध्र मात्रा रस्म अदायगी बन कर रह गए हैं, जिनमें दोहराए गए संकल्प प्रायः अगले ही दिन भुला दिए जाते हैं, इन संबोध्नों में पंडित जवाहरलाल नेहरू जैसी राजनीतिक उफष्मा और इंदिरा गांध्ी जैसी व्याकुल आग लगातार विलुप्त होती चली गई है। अब तो भाषण भी लिखित पढ़े जाने लगे हैं जो प्रायः बोझिल प्रवाह में नीरस बन कर रह जाते हैं। आजादी के मूल्यों से राष्ट्र के जीवन में प्राण पूफंकना अब दुर्लभ किस्म का काम हो गया है और लगता है जैसे मात्रा एक अनुष्ठान को पूरा करने की ही कोशिश की जा रही है। इसलिए जब भ्रष्टाचार को खत्म करने की वचनब(ता दोहराई जाती है तब देशवासियों को लगता है कि जैसे कोई तोता रटी-रटाई बातें सुना रहा हो। इस बार भी प्रधनमंत्राी मनमोहन सिंह भ्रष्टाचार के मुद्दे का अपने भाषण में स्पर्श करते हुए कहना नहीं भूले कि सरकार के पास कोई जादू की छड़ी नहीं है मगर सरकार भ्रष्टाचार के मामले में पंफसे उफंचे से उफंचे आदमी पर भी कानूनी कार्रवाई करने में नहीं हिचकिचाएगी। पं. नेहरू और इंदिरा गांध्ी भी ‘जादू की छड़ी’ नहीं होने की बात कहते थे। रविवार को राष्ट्रपति प्रतिभा पाटिल ने कहा था कि भ्रष्टाचार एक ऐसा कैंसर है जो देश के सामाजिक, आर्थिक, सांस्कृतिक और राजनीतिक जीवन को प्रभावित कर रहा है मगर इसे हटाने का कोई एक रास्ता नहीं हो सकता बल्कि इसके लिए जरूरी है कि विभिन्न स्तरों पर पारदर्शिता और जवाबदेही का एक तंत्रा स्थापित किया जाए और उसे लागू किया जाए। उन्होंने इशारे में यह भी कहा कि किसी भी मुद्दे पर देश में बहस-मुबाहिसें चलें, संवाद हों या विमर्श हो, मगर कानून बनाने का काम संसद का ही है जिसके अध्किारों का हनन नहीं होना चाहिए। प्रधनमंत्राी मनमोहन सिंह ने तो इससे एक कदम आगे जाकर जन लोकपाल विध्ेयक की मांग कर रहे गांध्ीवादी कार्यकर्ता अण्णा हजारे और नागरिक समाज के उनके सहयोगियों का नाम लिए बिना यह चेतावनी भी दे दी कि वे आमरण अनशन न करें। भ्रष्टाचार से लड़ने का इस सरकार का रिकार्ड देश की जनता के सामने है, जो यह जानती है कि अगर सुप्रीम कोर्ट हस्तक्षेप न करता तो कोई राजा, कोई कनिमोझि, कोई कलमाड़ी जेल के सींखचों के पीछे न पहंुचता और कोई मारन इस्तीपफा देने को मजबूर नहीं होता। आज काॅमनवेल्थ गेम्स के आयोजन में दिल्ली की शीला दीक्षित सरकार को नियंत्राक एवं लेखा महापरीक्षक ;कैगद्ध ने अपनी रिपोर्ट में भ्रष्टाचार अनियमितताओं का दोषी पाया है और प्रतिपक्ष उनके इस्तीपेफ की मांग कर रहा है, मगर पार्टी टस से मस होने को तैयार नहीं है। सीएजी की रिपोर्ट से इस्तीपेफ का कानूनी आधर न हो, लेकिन नैतिक कारण बन सकता है। इसके खिलापफ प्रदर्शन करने वाले भारतीय जनता युवा मोर्चा के कार्यकर्ताओं पर पुलिस ने दिल्ली में लाठियां चलाईं। दूसरी ओर सरकार ने जन लोकपाल बिल के लिए आमंत्राण अनशन की घोषणा करने वाले अण्णा हजारे के खिलापफ अभियान छेड़ दिया है।
कांग्रेस के प्रवक्ता मनीष तिवारी ने तो अण्णा हजारे को भ्रष्टाचार में आकंठ डूबा बता दिया। टांड पर पड़े हुए ठंडे बस्ते से जस्टिस ;सेवानिवृत्तद्ध पी. बी. सावंत की 2005 की पुरानी रिपोर्ट निकालकर मनीष तिवारी ने अण्णा हजारे के व्यक्तित्व पर कालिख पोतने की कोशिश की कि उन्होंने अपने ट्रस्ट के पैसे से 2 लाख 20 हजार रु. की रकम निकालकर अपना जन्म दिवस समारोह मनाया था। तथ्य यह है कि इस रिपोर्ट के बाद गठित की गई महाराष्ट्र सरकार की शुभटणकर समिति अण्णा को क्लीन चिट दे चुकी है। इसलिए अण्णा ने सरकार को चेतावनी दी कि अगर में भ्रष्ट हूं तो मेरे खिलापफ एपफ. आई. आर. दर्ज की जाए। उसके अगले ही रोज दिल्ली पुलिस ने अण्णा हजारे को दिल्ली गेट के पास स्थित जयप्रकाश नारायण पार्क में दी गई अनशन की अनुमति वापस ले ली और पूरे इलाके में धरा 144 लगा दी। इस पृष्ठभूमि में अण्णा हजारे और उनके समर्थकों को गिरफ्रतार करने की पुलिस की ध्मकी वास्तविक लगने लगी है। सापफ है कि केंद्र सरकार जवाबी कार्रवाई पर उतर आई है और जो बर्ताव दिल्ली पुलिस ने बाबा रामदेव के निहत्थे समर्थकों पर दिल्ली के रामलीला मैदान में किया था, उसी तरह के प्रारंभिक तेवर इस बार भी नजर आ रहे हैं। यह सारा घटनाक्रम इस बात को रेखांकित करता है कि भ्रष्टाचार को दूर करने के मामले में सरकार के कदम लड़खड़ाए हुए हैं। सरकार ने लोकपाल बिल का जो प्रारूप संसद में पेश किया है, उसमें अण्णा टीम द्वारा रखी गई बड़ी मांगों में से एक भी शामिल नहीं है। न तो प्रधनमंत्राी का पद, न न्यायपालिका और न संसद में सांसद का आचरण इस बिल के दायरे में आता है। न ही रोज-रोज कदम-कदम पर भ्रष्टाचार का सामना करने वाले आम नागरिक के लिए बिल में कोई प्रावधन है। सरकार सीबीआई को भी लोकपाल के अध्ीन लाने को तैयार नहीं है। इसलिए अण्णा खेमे का तर्क है कि सरकार के प्रारूप से तो एक कागजी शेर जैसी ही लोकपाल की संस्था अस्तित्व में आएगी। संसद की स्थायी समिति सरकार के मसौदे में बड़े परिवर्तन कर सकती है, बशर्ते समिति में शामिल प्रतिपक्ष के नेता भी लोकपाल को अध्किाध्कि शक्तिशाली बनाना चाहते हों। समिति के समक्ष अण्णा टीम का प्रस्तावित जन लोकपाल विध्ेयक भी रहेगा। सच यह है कि सरकार के रुख से प्रतिपक्ष भी ढुलमुल रवैया अपनाए हुए है। भाजपा खुलकर सरकार का विरोध् कर रही है और आंदोलन में अण्णा का समर्थन भी करती है। लेकिन विध्ेयक में उन कड़े प्रावधनों पर अपने पत्ते नहीं खोल रही। इस तरह संपूर्ण राजनीतिक व्यवस्था भ्रष्टाचार पर कृत्रिम आंसू बहा रही है।
Monday 15 August 2011
क्यों डरा रही महंगाई
महंगाई को एक बार पिफर दो अंकों में पहुंचाने को बेताब है। बृहस्पतिवार को जारी आंकड़ों के मुताबिक गत 30 जुलाई को महंगाई दर बढ़कर 9.90 प्रतिशत हो गयी है, जो 11 जून को 9.13 प्रतिशत ही थी। महंगाई दर के पुनः दो अंकों में पहुंचने की बेताबी की पुष्टि खुद भारतीय रिजर्व बैंक के उस सर्वे से भी होती है जो बताता है कि इस साल की बात तो छोडि़ए, अगले साल जून तक भी महंगाई से कोई राहत नहीं मिलने वाली। यही नहीं, सर्वे के मुताबिक तो महंगाई दर 13 प्रतिशत तक जा सकती है। यह सही है कि रोजमर्रा की जिंदगी में हर रोज बेलगाम महंगाई की मार झेल रहे आदमी को इसकी प्रहारक क्षमता के आकलन के लिए न तो सरकार द्वारा जारी किये जाने वाले इन आंकड़ों की जरूरत है और न ही भारतीय रिजर्व बैंक के किसी सर्वे की, लेकिन ये आंकड़े और सर्वे हमारी सरकार के नीति-नियंताओं की कलई अवश्य खोलते हैं। यह आश्चर्य ही नहीं, शर्म की भी बात है कि वित्तमंत्राी से लेकर प्रधनमंत्राी तक पिछले तीन साल से महंगाई से राहत की नयी-नयी समय सीमाएं बताते रहे हैं, लेकिन इसके वायदे वपफा तक नहीं हो पाये। खुद सरकार के आंकड़े और भारतीय रिजर्व बैंक का सर्वे तो बताता है कि हमारे हुक्मरानों के ये वायदे अभी लगभग एक साल तक और भी वपफा नहीं होंगे। इसके कारण समझ पाना भी मुश्किल नहीं होना चाहिए। सरकार भले ही महंगाई नियंत्राण के लिए अनेक प्रभावी कदम उठाये जाने के दावे करे, पर सच तो यही है कि भारतीय रिजर्व बैंक द्वारा अपनी दरों में बदलाव और ट्टण दरों में वृ(ि के अलावा कोई कारगर कदम आज तक उठाया ही नहीं गया है। हां, पहले से ही आम आदमी की जिंदगी में आग लगा रही महंगाई पर तेल छिड़कने के लिए कई बार पेट्रोलियम पदार्थाें की कीमतों में रेकाॅर्ड वृ(ि अवश्य कर दी गयी है। इसलिए हैरत नहीं चाहिए कि ठीक पंद्रहवीं लोकसभा के चुनावों के वक्त महंगाई की लगाम थोड़ी थामकर एक और कार्यकाल का जनादेश पाने के बाद मनमोहन सिहं सरकार संवेदहीनता के साथ कहने लगे हैं कि विकास होगा तो महंगाई बढ़ेगी ही तथा उसके पास महंगाई पर काबू पाने के लिए कोई जादू की छड़ी नहीं है। जादू की छड़ी तो किसी भी सरकार के पास किसी भी समस्या से निजात पाने-दिलाने के लिए नहीं होती है, पिफर भी सरकारें उनसे पार पा लेती हैं, क्योंकि उनमें वैसा करने की इच्छाशक्ति होती है। दरअसल खासकर महंगाई के मोर्चे पर मनमोहन सिहं सरकार की सबसे बड़ी समस्या यही है कि इच्छाशक्ति का अभाव नजर आता है। वर्ष 2008 में जब महंगाई बढ़ना शुरू हुई थी, तब से लेकर सरकार उसके कारण और बहाने तो बदलती रही है, पर उस पर काबू पाने की कोई रणनीति नहीं बना पायी। कभी महंगाई का ठीकरा खराब मानसून के सिर पफोड़ा गया तो कभी कम उत्पादन के। कभी मनमोहन सिंह के मोंटेक सिंह आहलूवालिया सरीखे सिपहसालारों ने संवेदनशीलता को ताक पर रख कर इसके लिए आम आदमी की बढ़ती क्रय-शक्ति को ही जिम्मेदार ठहरा दिया तो कांग्रेस के प्रवक्ता इसका दोष राज्य सरकारों के सिर पड़ते रहे, बिना इस बात का अहसास किये कि कई राज्यों में उनके दल की भी सरकारें हैं और वहां भी महंगाई उतनी ही बेलगाम है।
केंद्र में संयुक्त प्रगतिशील गठबंध्न की सरकार का नेतृत्व कांग्रेस कर रही है। इसलिए कांग्रेस अध्यक्ष श्रीमती सोनिया गांध्ी महंगाई पर चिंता व्यक्त करते हुए प्रधनमंत्राी मनमोहन सिंह को पत्रा लिखकर अपने कर्तव्य की इतिश्री समझती रही हैं और मनमोहन सिंह महंगाई नियंत्राण की जरूरत पर जोर देकर, पर यह कोई नहीं बताता कि परिणाम देने की जिम्मेेदारी किसकी है ?वर्ष 2004 में जब पाठ आठ साल के लंबे अंतराल के बाद कांग्रेस केंद्रीय सत्ता में वापस लौट पायी थी तब नारा दिया गया था कि आम आदमी का हाथ, कांग्रेस के साथ, पर संवेदनशील राजनीति का छलावा देखिए कि उसी आम आदमी का जीवन इन सालों में सबसे ज्यादा दुश्वार हो गया है। दरअसल जिस दाल, चावल, आटा, आलू, प्याज को कभी आम आदमी के जीवनयापन का जरिया बताया गया था, वह पिछले चार सालों में मध्यम वर्ग और उच्च मध्यम वर्ग की पहंुच से भी बाहर चले गये हैं। सरकार की इच्छाशक्ति ही नहीं मंशा पर भी सवाल इससे खड़े हो जाते हैं कि एक और खाद्यान्न के दाम घरेलू बाजार में बेलगाम हैं तो दूसरी ओर खाद्यान्न सरकारी गोदामों में और उनके बाहर उचित रखरखाव के अभाव में पड़ा सड़ रहा है। सुप्रीम कोर्ट तक सरकार को यह नसीहत दे चुका है कि रखरखाव के अभाव में सड़ रहे खाद्यान्न गरीबों में मुफ्रत बांट दिया जाये, लेकिन आम आदमी के साथ अपने हाथ का दम भरने वाली सरकार को खाद्यान्न का सड़ जाना गवारा है, पर उन लोगों को बांट देना नहीं, जो भुखमरी के कगार पर हैं। दरअसल बृहस्पतिवार को जिस दिन सरकार ने महंगाई दर के पिफर से दो अंकों के करीब पहुंचने के आंकड़े जारी किये, उसी दिन केंद्रीय वित्तमंत्राी का संसद के अंदर बयान भी सरकार की संवेदनहीनता की ही पुष्टि करता है। वित्तमंत्राी प्रणव मुखर्जी ने अपने प्रधनमंत्राी की आर्थिक सोच के अनुरूप ही राग अलापा कि विकास होगा तो महंगाई भी होगी, पर यह नहीं बताया कि यह विकास किन लोगों का हो रहा है और महंगाई की मार किन लोगों पर पड़ रही है ?वित्तमंत्राी ने कुछ पुराने आंकड़े भी याद दिलाये, जब महंगाई दर 16 या 20 प्रतिशत तक पहुंच गयी थी। महंगाई पर नियंत्राण में नाकाम सरकार के वित्तमंत्राी की ऐसी संवेदनहीन बयानबाजी तो जनता को आश्वस्त करने के बजाय और डरायेगी ही। बेहतर होगा कि सरकार महंगाई नियंत्राण के लिए उठाये गये अपने तथाकथित उपायों की समीक्षा कर कोई दीर्घकालीन ठोस रणनीति बनाये।
Friday 12 August 2011
चुनाव की आहट देखते ही क्यों बदलने लगती आस्थाएं ?
उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधनसभा चुनाव में अपने-अपने समीकरण बिठाने और सीट बरकरार रखने की जुगत में राजनेताओं की ‘आस्थाएं ‘ तेजी से बदल रही हैं और हाल के दिनों में नेताओं के दल बदल में खासी तेजी आने से स्थिति दिलचस्प होती जा रही है। आस्थाएं बदलने का यह सिलसिला इस साल मई में समाजवादी पार्टी के बहुजन समाज पार्टी विधयक पफरीद महपफूज किदवाई को अपने पाले में लाने से शुरू हुआ था। उसके बाद तो जैसे दोनों दलों के बीच एक-दूसरे के ‘माननीयों ‘ को अपने पास खींचने की होड़ सी लग गई। इस कवायद में अब तक सपा के सात विधयक बसपा में जबकि सत्तारुढ़ दल के चार विधयक सपा के पाले में जा चुके हैं। इसके अलावा भाजपा तथा कांग्रेस के नेताओं और कार्यकर्ताओं का अपनी पार्टी में विश्वास भी डोल रहा है। यह दिलचस्प है कि सभी पार्टियां दल-बदलुओं का खुले दिल से स्वागत कर रही हैं और उनके इस कदम को सही ठहराने तथा विरोध्यिों की जीत की सम्भावनाओं पर चोट देने की कोशिश में उन्हें चुनाव का टिकट भी दे रही हैं।
गत मई में मसौली से बसपा विधयक पफरीद महपफूज किदवई सपा में शामिल हुए। बाद में पिछले महीने के अंत में बसपा के दो और विधयक शेर बहादुर सिंह ;जलालपुरद्ध और कृष्ण कुमार सिंह ;मल्लावांद्ध सपा में शामिल हो गए। पार्टी ने इन सभी विधयकों को चुनाव के टिकट भी दे दिये। इसके अलावा डिबाई से बसपा के दागी विधयक भगवान शर्मा उपर्फ गुड्डू पंडित ने हाथी ;बसपा का चुनाव निशानद्ध छोड़कर साइकिल ;सपा का चुनाव चिन्हद्ध की सवारी कर ली। भाजपा के दो विधयक यशवंत सिंह चैहान ;सिकंद्राराउद्ध और राजेन्द्र सिंह ;पफतेहाबादद्ध, पूर्व विधयक एवं पार्टी की राज्य इकाई के सचिव गोमती यादव ने भी सपा की राह पकड़ ली। इससे पफूली नहीं समा रही सपा का दावा है कि उसकी लोकप्रियता बढ़ी है क्योंकि जनता यह मानती है कि राज्य की मायावती सरकार के जुल्म के खिलापफ सिपर्फ इसी दल ने सार्थक लड़ाई लड़ी है।
दूसरी ओर, बसपा की अपने चार विधयकों के सपा में शामिल होने पर प्रतिक्रिया कुछ यूं रही ‘‘ये सभी चार विधयक बसपा की विचारधरा के विपरीत काम कर रहे थे। उन्हें पार्टी से पहले ही निलम्बित किया जा चुका है और चूंकि उनके खिलापफ कापफी शिकायतें आ रही थीं लिहाजा उनका टिकट भी काट दिया गया है। ‘‘ पार्टी नेताओं के दल छोड़कर जाने के सिलसिले को रोकने के लिये बसपा अध्यक्ष और प्रदेश की मुख्यमंत्राी मायावती ने आश्वासन दिया है कि वह चुनाव के बाद पार्टी के सभी मौजूदा विधयकों को समायोजित करेंगी। बसपा ने हालांकि अभी अपने उम्मीदवारों की पूरी सूची जारी नहीं की है लेकिन अपना टिकट काटे जाने की आशंकाओं के चलते उसके नेता दूसरे दलों का दामन थाम रहे हैं। दूसरे दलों के नेताओं का अपने आंगन में स्वागत करने में कांग्रेस भी पीछे नहीं है। पार्टी के महासचिव दिग्विजय सिंह ने हाल में प्रतापगढ़ में दावा किया था कि बड़ी संख्या में बसपा के नेता उनके सम्पर्क में हैं और वे जल्द ही कांग्रेस में शामिल हो सकते हैं। सिंह ने यह दावा बसपा नेता और पूर्व विधन परिषद सदस्य सिराज मेंहदी के कांग्रेस में शामिल होने के बाद किया।
अपने चार विधयकों के सपा में शामिल होने के बाद बसपा ने भी हरकत में आते हुए सपा के सात विधयकों- संध्या कठेरिया ;किशनीद्ध, अशोक चंदेल ;हमीरपुरद्ध, सर्वेश सिंह सीपू ;आजमगढ़द्ध, संदीप अग्रवाल ;मुरादाबादद्ध, सुरेन्द्र सिंह लोद ;उन्नावद्ध, सूरज सिंह शाक्य ;उन्नाव ग्रामीणद्ध और सुलतान बेग ;बरेलीद्ध को अपने पाले में खींच लिया। बसपा की उत्तर प्रदेश इकाई के अध्यक्ष स्वामी प्रसाद मौर्य भविष्य में कई और विधयकों के पार्टी में शामिल होने का दावा करते हुए कहते हैं ‘‘अभी तो शुरुआत है- आगे आगे देखिये होता है क्या।‘‘ अपनी पार्टी के विधयकों के बसपा में शामिल होने पर सपा प्रवक्ता राजेन्द्र चैध्री का कहना है कि बसपा सपा से निकाले गए या पिफर टिकट से वंचित किये गए विधयकों को अपने साथ लेकर नाटकबाजी कर रही है। भाजपा भी अपनी ताकत दिखाने के लिये विपक्षी दलों के नेताओं को लुभाने की कोशिश कर रही है। हालांकि अब तक दूसरे दल के किसी भी विधयक ने भाजपा का झंडा नहीं थामा है लेकिन बसपा नेता और पूर्व सांसद प. सिंह चैध्री पिछले महीने भगवा दल में जरूर शामिल हो चुके हैं।
Tuesday 9 August 2011
देहव्यापार पर पब्लिक का छापा, लड़कियों को पकड़ा
Wednesday 3 August 2011
आखिर क्यों ढेर हो रहे कागजी शेर
इंगलैंड का क्रिकेट दौरा जैसे-जैसे आगे बढ़ रहा है, धोनी के धुरंधरों की कलई खुल रही है। टेस्ट क्रिकेट रैंकिंग में पहले स्थान पर काबिज तथा एक-दिवसीय क्रिकेट की विश्व-विजेता भारतीय टीम का प्रदर्शन अभी तक खेले गये दोनों टेस्ट मैचों में देश को शर्मसार करने वाला ही रहा है। हालांकि टेस्ट क्रिकेट में तो ड्रा भी सम्मान बचाने का एक प्रचलित विकल्प रहता है, लेकिन अगर हार-जीत को खेल के दो स्वाभाविक पहलू ही मान लें तो भी अपनी लाज बचाने के लिए आप कम से कम संघर्ष करते हुए तो हारेंगे? लेकिन भारतीय टीम है कि समर्पण करने के लिए उतावली नजर आती है। क्रिकेट का मक्का कहे जाने वाले लॉड्र्स पर खेले गये पहले टेस्ट मैच में शर्मनाक हार के बाद बचकाना तर्क दिया गया कि तैयारी के लिए पर्याप्त समय नहीं मिला। आप अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेल रहे हैं। वन-डे के विश्व चैंपियन हैं, टेस्ट रैंकिं ग में भी दुनिया में नंबर वन हैं, तो फिर तैयारी कब और कैसे की जाये—यह आपको कौन बतायेगा? वैसे तो आर्थिक दृष्टि से दुनिया के सबसे संपन्न क्रिकेट बोर्ड —भारतीय क्रिकेट कंट्रोल बोर्ड से भी यह उम्मीद की जाती है कि वह किसी क्रिकेट दौरे के लिए तैयारी जैसे अहम मसलों पर भी ध्यान दे, पर विश्व-कप जीतने पर बोर्ड द्वारा एक-एक करोड़ रुपये की पेशकश से खफा हो कर दो-दो करोड़ रुपये पर मानने वाले हमारे क्रिकेटर और उनके कप्तान महेंद्र सिंह धोनी ने इंगलैंड दौरे से पहले तैयारियों के लिए पर्याप्त समय देने के लिए बोर्ड पर दबाव क्यों नहीं बनाया?खेल के लिए अकसर कम तैयारी को रोना रोने वाले हमारे क्रिकेटर पैसे की खातिर आईपीएल से लेकर मॉडलिंग और टीवी तक पर कुछ भी करने को किस कदर तैयार रहते हैं, हम सभी जानते हैं। बेशक किसी भी दूसरे देश में वहां के वातावरण और विकेट के मिजाज से तालमेल बिठाने के लिए कुछ वक्त चाहिए ही। इंगलैंड भी इसका अपवाद नहीं है, पर यदि आप पेशेवर हैं और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर खेल रहे हैं तो इन स्वाभाविक कसौटियों पर तो आपको खरा उतरना ही होगा। हालांकि अंतर्राष्ट्रीय स्तर के पेशेवरों के साथ ऐसी रियायत की बात सोची भी नहीं जानी चाहिए, पर यदि लापरवाही की हद तक उदारता दिखाते हुए ऐसा किया भी जाये तो हद से हद तक लॉड्र्स टेस्ट की पराजय को कम तैयारियों की आड़ में माफ किया जा सकता है, लेकिन टेंट ब्रिज में खेले गये दूसरे टेस्ट में मिली शर्मनाक हार पर धोनी और उनके धुरंधर क्या कहेंगे? हालांकि किसी भी विजेता टीम को खेल के हर क्षेत्र में श्रेष्ठ होना चाहिए, पर भारतीय टीम की असली ताकत उसकी बल्लेबाजी ही मानी जाती है, लेकिन विडंबना देखिए कि दोनों ही टेस्ट मैचों में देश को शर्मसार करने वाली हार में इस बल्लेबाजी ने ही निर्णायक भूमिका निभायी। पैसे के भूखे हमारे क्रिकेटरों ने खुद को जिस तरह आईपीएल की भट्टी में झोंका, उसका खमियाजा यह देश अब तक भुगत रहा है। वीरेंद्र सहवाग इंगलैंड दौरे के लिए तो स्वस्थ हो गये, पर टेस्ट शृंखला शुरू होने से पहले ही फिर दो टेस्ट मैचों के लिए अस्वस्थ हो गये। गौतम गंभीर लॉड्र्स में खेलते हुए ही चोटिल होकर टेंट ब्रिज मैच से बाहर हो गये। यही हाल जहीर खान का हुआ।जो खिलाड़ी टीम में हैं, वे भी पता नहीं क्यों अपनी प्रतिष्ठा के अनुरूप प्रदर्शन नहीं कर पा रहे। इससे भी बड़ी हैरत की बात यह कि जो प्रदर्शन करते हैं, उन्हें खुद कप्तान धोनी निर्णायक क्षणों में मोर्चे से हटा देते हैं। जरा याद करिए लॉड्र्स में जब ईशांत शर्मा अंग्रेज बल्लेबाजों को ता-थैय्या करा रहे थे तो धोनी उन्हें हटाकर खुद गेंदबाजी करने आ गये। विकेट कीपिंग आपकी शुरू से ही दोयम दर्जे की है, जिस आतिशी बल्लेबाजी की बदौलत आपको टीम में लिया गया, वह पता नहीं कहां लापता हो गयी तो फिर आप गेंदबाजी में ही क्या कमाल दिखा देंगे? अंजाम जगजाहिर है, भारत के दबाव से निकलकर इंगलैंड इस कदर हावी हुआ कि मैच ही जीत लिया। टेंट ब्रिज में भारतीय गेंदबाजों ने पहली पारी में 68 रनों पर छह अंग्रेज बल्लेबाजों को पैवेलियन लौटा दिया था, पर जिस ओवर में श्रीसंत ने तीसरा विकेट लिया उसके अगले ही ओवर में धोनी ने उन्हें गेंदबाजी से हटा दिया। उसके बाद भी 128 रन के स्कोर पर इंगलैंड के आठ बल्लेबाज आउट कर दिये गये, लेकिन धोनी क ी लचर कप्तानी और हरभजन सिंह सरीखे अनुभवी स्पिनर की लगातार दूसरे टेस्ट में बेजान गेंदबाजी ने उन्हें 221 तक पहुंच जाने दिया। दूसरी पारी में तो और भी गजब हुआ, जब इंगलैंड ने 544 का विशाल स्कोर खड़ा कर, पहली पारी में बढ़त लेने वाले भारत को 478 रन का गगनचुंबी लक्ष्य दे दिया, लेकिन भारतीय बल्लेबाजों ने महज 158 रनों पर समर्पण कर दिया। जाहिर है, इस लगातार दूसरी बड़ी पराजय से भारतीय टीम की साख ही ध्वस्त नहीं हो गयी है, बल्कि टेस्ट रैंकिंग में उसकी बादशाहत भी खतरे में है। अगर ऐसा ही प्रदर्शन जारी रहा तो फिर भारतीय टीम की शिखर से फिसलन तय है।
Tuesday 2 August 2011
तमिल शरणार्थियों को मिलेगा 1000 रुपये मासिक
चेन्नई। तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जयललिता ने प्रदेश में शरणार्थी शिविरों में रह रहे 5544 श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों को एक-एक हजार रुपये की मासिक सहायता राशि देने की घोषणा की है।
इस बारे में मुख्यमंत्री ने आदेश जारी कर दिए हैं। इसमें कहा गया है कि मुख्यमंत्री प्रदेश में शरणार्थी शिविरों में रह रहे श्रीलंकाई तमिल शरणार्थियों के पुनर्वास को लेकर चिंतित हैं इसलिए राज्यपाल के संबोधन में भी कहा गया था कि विभिन्न पुनर्वास योजनाओं का दायरा इन तमिलों तक बढ़ाया जाएगा।
विज्ञप्ति के मुताबिक, जयललिता पिछले महीने अमेरिकी विदेश मंत्री हिलेरी क्लिंटन से मिलीं थीं और इस दौरान भी उन्होंने इन शिविरों में रह रहे श्रीलंकाई तमिलों की दुर्दशा का मुद्दा उठाया था।
जल्दबाजी में कोई फैसला नहीं करूंगा
बेंगलूर। कर्नाटक में राजनीतिक उठापटक के बीच प्रदेश के राज्यपाल एच आर भारद्वाज ने मंगलवार को कहा कि वह जल्दबाजी में कोई कार्रवाई नहीं करेंगे।
भारद्वाज ने विश्वास जताया कि बी एस येद्दियुरप्पा के इस्तीफा देने के बाद सत्ताधारी भाजपा नया नेता चुन लेगी। भारद्वाज ने कहा कि उनके पास यह मानने का कोई कारण नहीं है कि सत्ताधारी पार्टी नया नेता नहीं चुन पाएगी।
उन्होंने इस बात पर भी जोर दिया कि अपना नेता चुनना विधायक दल की जिम्मेदारी है। उन्होंने कहा कि मैं कोई भी कदम जल्दबाजी में नहीं उठाना चाहता। मैं बुधवार तक [विधायक दल की बैठक होने तक] कोई टिप्पणी नहीं कर सकता। भारद्वाज ने कहा कि वह भाजपा को सही तरीके से अपना नेता चुनने के लिए पूरा समय देंगे और वह देखना चाहते हैं कि चीजें [नए नेता का चुनाव] सही तरीके से हो।