Monday 25 August 2014

करोल बाघ जोन भवन निर्माण विभाग में भ्रष्ट्राचार
जे. ई. बदल जाता लेकिन अवैध निर्माण नहीं रुकता  

Tuesday 19 August 2014

"प्रभु आये थे ,दे गए संदेश "


सूर्य भी उगता है ,हमारे इशारे पे 
चन्दन भी उगता है हमारे इशारे पे 
अस्त होने से पहले ,पुछता  है
अस्त हो जाऊं "सुमन ".
    हम  तो कहते है यारो 
    हम भी चलते है किसी के इशारे पर 
    वह खुदा है ,वह ख़ुदा है ........ 

तुमने देखा है ईश्वर को 
क्या तुमने देखा है अल्ला को 
तुमने देखा है गुरुगोविंद को 
क्या तुमने देखा है ईसा को 
यह सिर्फ एक ,विश्वास व आस्था है 
फिर तुम्हे अपने  
नेक कर्मो पर विश्वास
क्योँ नहीं अपने 
कर्म फलो पर 
आस्था क्यो नहीं।
मंदिर -मस्जिद,चर्च 
 गुरुद्वारा  के नाम पर  
तू लड़ता है 
इसी  पर तू मरता है 
एक दूसरे से करता है तू नफरत
 लेकिन सभी प्रभु ने तो प्यार का सुनाया है पैगाम। 

क्यों नहीं ,तुम्हे अपने कर्मो पर विश्वास 
क्यों नहीं ,रखता 'कर्मफल ' पर आस्था 
कब -तक, नफरत फैलाते रहोगे 
देवो के अस्तित्व पर ,सवालिया निशान लगाकर  
हमने ईश्वर,अल्ला,वाहेगुरु व ईसा को देखो है
वे कह रहे थे तू मेरा यह पैगाम जन-जन तक पंहुचा दे ,

जो जाति -पात ,ऊच-नीच व क्षेत्रीयता फैलता है 
वो पुरुषोत्तम राम नहीं ,मानवता का दुश्मन रावण है। 

बड़े आहत थे अल्ला वाहे गुरु ईसा
कह रहे थे ,इन्हे मेरा पैगाम सुना दो 
हमने प्यार करना दीन दुखियों को 
मदद करना ,बीमारो की सेवा करने का 
सन्देश दिया था ,अत्याचार ,दोहन ,शोषण 
के खिलाफ संघर्ष किया था ,हमने कभी 
नफरत का पैगाम नहीं दिया ,फिर 
हमारे नमो का इस्तेमाल कर ये मुर्ख 
क्योँ मानवता की धज्जियाँ उड़ा रहे है ,

देना उन्हें यह पैगाम अगर पडोसी भूखा 
सो रहा है और तुम भले स्वादिष्ट व्यंजन समझ 
कर खा रहे हो तो वह भोजन तुम्हारे लिए विष है, 

देना उन्हें यह पैगाम अगर कोई लाचार
कराह रहा है और तुम हंस रहे हो तो समझो 
तुम मेरा उपहास उड़ा रहे हो ,अगर 
वास्तव में तुम्हे ईश्वर -अल्ला -वही गुरु व ईसा 
से प्रमे है ,उनपर विश्वास है ,धर्म में आस्था है 
तो यह प्रतिज्ञा करो 
           जाति धर्म ,वर्ग ,भेद के नाम पर हम 
नहीं लड़ेंगे  ," मानवता " की रक्षा खातिर मरना पड़ा 
तो हम मरेंगे ,सत्य -अहिंसा के पथ पर चलकर 
प्रभु तेरी चरणों में हम आयेंगे,प्रभु चरणो में अपना 
जीवन ,सादाजीवन -उच्च विचार के साथ बिताएंगे। 

             प्रभु आये और अपना सन्देश दे गये ,हमने 
तुम्हे बता दिया ,बाकीं अब तुम्हारी इच्छा।

                                                                  ललित "सुमन"

Monday 18 August 2014

"परायों"  को  भी "अपना" कर 

गिला -शिकवा , छोड़  दो  यारों
सबको , एक   दिन  जाना है।
अपना  पराया , कौन  है जग  मै
सबको  एक दिन  जाना है।
मुट्ठी  बंद  करके  तुम   आये  थे
खाली हाथ ही जाना है
अपना  पराया  कौन  है  जग  मई
सबको  एक  दिन  जान है।
इतराने दो उनको यारों
जो दौलत  पा   कर  इतराते  है
इतराने दो उनको  यारों
जो  शक्ति  पाकर  ,रौब दिखाते है
इतराने  दो  उनको   यारों
जो  अपना वैभव दिखाते है
अपना पराया कौन है जग  में
सबको एक दिन जाना है।

बता सको तो नाम बताओ
कौन -कौन दौलतमंद यहाँ जनम लिया
बता सको तो नाम बताओ
कौन शक्तिमान अब याद रहा
बता सको तो नाम बताओ
किसकी वैभव जिन्दा  है
इतिहास उसी को याद रखता
जिसके आँगन अच्छाइयां पलटी है
जो देता क़ुरबानी ,वाही अमित छाप छोड़ता है
बुराइयों से लड़कर ,अच्छाइयों का पुष्प
खिलताhai ,खुशबू उसकी सदा सदा
करो और फैलती है
अपन पराया कौन है  जग में
सबको एक दिन जाना है।

इतिहास भरा है शूरवीरो से
कायरो को कब ,कौन पूजता है
जन्मmila है "मानव" का तो
"मानवता" की तू रक्षा कर

अपना पराया का भेद मिटा कर
परायों को भी अपना कर
गिला शिकवा छोड़ दो यारो
सबको एक दिन जाना है

अपना पराया कौन है जग में
सबको एक  दिन जाना है...
                                                 ललित "सुमन"



"कर्मपथ - कर्मपथ"

जीवन को समर्पित
एक ही मंत्र ,कर्म पथ -कर्म - पथ

बचपन से लेकर अब तक
विभिन्न  राहो  पर, चलते हुए
मंजिल  तक, पहुचने  को आतुर
मेरा yah मन ,कहता  है -पथिक
तू निरंतर बढ़ता चल ,यही है तेरा कर्मपथ
अच्छाइयों  के फूल ,खिलाना  है तुम्हे
बुराइयों  के  काटो  से  ,करना  होगा  संघर्ष
रुकना  नहीं  पथिक ,थकना  नहीं  पथिक
बुराइयों  के  कांटे  ,तुम्हे  पथ  पथ  पर  रोकेंगे
अच्छाइयों  के  बल  पर  चलता  रह
अपने  कर्म  पथ  अपने  कर्म  पथ
श्री  कृष्ण  हो  या  श्री  राम
ईसा  हो  ,गुरु गोविन्द  या  मो. हजरत
सभी  को  करना  पड़ा  है संघर्ष  ,बुराइयों  से
तब  ही  खिला  है ,अच्छाइयों  का  फूल
चारों  दिशाओं में फैली  है उसकी  सुगंध
पथिक  चलता  रह  ,कर्म  पथ  -कर्म  पथ

सब जानते   है ,जो  आया  है वह  जायेगा
भरम  में  उलझ  कर  ,भूल  जाते  है कर्म  पथ
अच्छाइयों  को  त्याग  ,
बुराइयों   को  आणिक   स्वार्थवश  कर  लेते  है आत्मसाध  ,
जीवन  समाप्त   हो  जाता
उन्हें  नहीं  मिल  पता  ,सुगंध
पथिक  ,तू - मत  भटक
चिरकाल  तक  ,याद  करेगी  धरा
तुम्हारे  संघर्ष  को  ,तू  सदा  बढ़ताचल  
कर्म  पथ - कर्म  पथ - कर्म पथ !                  

                                           ललित "सुमन"