Thursday 4 December 2014

क्या मोदी वर्ष पुरुष हैं .......
अपने विचार दें

Monday 17 November 2014

आओ एक दीप जलाएं

आओ एक दीप जलाएं

एक बार फिर दिपावली का त्योहार मनाने हम जा रहे हैं दीपावली के छ: दिन बाद हम डूबते सूर्य को नमस्कार कर अगले दिन उगते सूर्य को नमस्कार कर छठ त्योहार मनाएंगे। इसी कड़ी में  छ: नवम्बर को गुरूनानक जयन्ती भी मनाने जा रहे हैं, सभी त्योहार हमें मन के अंधकार को दूर कर संतोष की कला सिखाता है ताकि हम सुख व शांति प्राप्त कर मुक्ति पाने के लिए प्रार्थना कर सकें।
क्या वास्तव में हम ऐसा कर पा रहे हैं। आत्ममंथन करें, आज फिर एक बार हमारे सामने एक सुनहरा अवसर है गणेश पूजा, श्राद्ध, दुर्गापूजा, दशहरा, बकरीद के बाद दीपावली, छठ, और गुरूनानक जयन्ती सभी बार-बार मुझे यह बताने का प्रयास कर रहा है कि सत्य की सदा जय होती है। रावणी शक्ति का हमेशा अंत होता है, अंधकार पर, सदा प्रकाश विजय प्राप्त करती है लेकिन आज भौतिक पदाथोर्ं की येन केन प्राप्ति के लिए हम अंधा होकर दिन-रात लगे हुए हैं। हमें इतना भर भी सोचने का समय नहीं है कि जो कुछ भी हम कर रहे हैं क्या वह उचित भी है? हम यह भी भूल चुके हैं कि हम जो कुछ दिन-रात संग्रह कर रहे हैं, वह सब कुछ, इसी जगत में छोड़कर जाना होगा। धन कमाना बुरा नहीं है लेकिन अंधा होकर धन अर्जित करना बिल्कुल बुरा है। मनुष्य को जीवन में तीन अवस्था से गुजरना पड़ता है, बचपन, जवानी और बुढ़ापा, बचपन में ब्रहमचर्य का पालन करते हुए नाना प्रकार के सद्‌विद्या रूपी धन अर्जित करना चाहिए। यह धन हमें जीवन के अन्तिम काल तक हमें राह दिखाता है। जवानी में परिश्रम रूपी धन अर्थात कर्मधन अर्जित करना चाहिए, इस धन से अपना, अपने परिवार का, अपने वंशजों  का ख्याल रखते हुए जरूरतमंदों की मदद करनी चाहिए। बुढ़ापे में आहार विहार का संयम के साथ प्रभू भजन रूपी धन अर्जित करना चाहिए जो हमें मोक्ष प्राप्त करने में सहायक हो। नीतिकार शिरोमणि भर्तृहरि ने कहा है-
भोगा न भुक्ता, वयमेव भुक्ता, स्तपो प तप्तं वयमेव तप्ता।
कालो न यातो, वयमेव याता: स्तृष्णा न जीर्णा, वयमेव जीर्णा:।
भोगों के भोगते जाने से भोगों के प्रति भूख उतरोत्तर बढ़ती जाती है। जिस व्यक्ति को जीवन में संतोष नहीं आता, उसकी जिंदगी का अंत बुरा होता है। कामना की पूर्ति से एक और कामना पैदा हो जाती है हिटलर, नेपोलियन और सिकन्दर जैसे योद्धाओं को जब बेसब्री के चश्में लगे तो उन्होंने पूरे विश्व को आपने अधीन करना चाहा, रावण को जब भोग विलास की कामनाओं ने बेसब्र किया तो उसने श्रीराम से बैर ले लिया और परिणाम क्या हुआ यह बताने की आवश्यकता नहीं है।
 जब संतुष्टि आती है तो मनुष्य के पास उपलब्ध विशाल वैभव राशि भी कोई मायने नहीं रखती। कहा भी गया है-
 गजधन, गऊधन, बाजी धन और रत्न धन खान, जब आवे संतोष धन, सब धन धूलि समान।
 संतोष मन की एक ऐसी अवस्था है, जिसकी प्राप्ति पर संसार के सारे धन धूल के समान लगते हैं। संतोष धन प्राप्त करने के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा तृष्णा है और जब तक आप तृष्णा पर विजय प्राप्त नहीं कर लेते तब तक आप संतोष धन नहीं प्राप्त कर सकते हैं।  विभिन्न धमोर्ं में त्योहार का महत्व यही बताता है कि आप तृष्णा पर विजय प्राप्त कर संतोष धन प्राप्त करें लेकिन तृष्णा पर विजय पाने की जगह हम मृगतृष्णा में भटकते रहते हैं। जिस प्रकार रेगिस्तान में मृग पानी की चाह में इधर-उधर भटक कर अंत में अपने प्राणों से हाथ धो बैठता है, उसी प्रकार इस आधुनिक दुनिया में आधुनिकता की चाह में मानव दर-दर भटक रहा है और अंतत: सभी कुछ यहीं छोड़ जाता है। आईये, इस दीपावली, छठ, गुरूपर्व के अवसर पर एक दीप हम, संतोष प्राप्ति के लिए जलाएं, जो तृष्णा रूपी अंधकार से हमंे। मुक्ति दिलाएं। भारत अध्यात्म का देश है, और जो अध्यात्म के मार्ग पर चलकर तृष्णा पर विजय प्राप्त करने में सफल हो जाएगा, उसे मोक्ष तो अवश्य मिलेगी वर्ना तृष्णा हमें अनंत जन्मों तक जीवन मृत्यु के चक्र में घेरे रखेगा और हम यूं ही भटकते रहेंगे।
 
     इन्हीं शब्दों के साथ आप सभी को दीपावली, छठ, गुरूपर्व की हार्दिक बधाई।
                                                                                                                        ललित 'सुमन' 

Saturday 6 September 2014

कालाधन

रोटी -कपड़ा और माकन के 
चक्रव्यूह में फंसकर सारा जीवन ख़त्म किया 
एक पल भी यह न सोचा
मेरे मातृभूमि का क्या हुआ। 

देश की खातिर जो शहीद हुए 
रोटी- कपड़ा और माकन के 
चक्रव्यूह में उलझ कर 

उनको भी हम भूल गए।

क्रंदन सुनो, भारत माता की
रो- रो कर ,वह पूछ रही
सत्ता -शासन मिलते ही तुम
भारतवासी को क्यों भूल गये
देश को लूटने वाला ,आज भी
आजाद कैसे घूम रहे।

कालाधन सिर्फ धन नहीं है
जो सिर्फ वापिस आएगा
जिसने भी भारत के वैभव को लूटा
उसको तुम फांसी दो
हंस सके हर भारतवासी
ऐसी तुम आजादी दो .......
भाई -भाई को प्रेम करें

दौलत की खातिर न ,हत्या हो
ऐसा वैभवशाली,भारत बनाओ
जहाँ साथ - साथ सब
गीता -कुरान -बाइबिल -ग्रन्थ पढता हो
ऐसा तुम भारत निर्माण करो ,जहाँ एक साथ सब
गीता -कुरान -बाइबिल -ग्रन्थ पढता हो ......

                                                  ललित "सुमन "
                                       चीफ एडिटर "दैनिक इंडिया दर्पण "

Thursday 4 September 2014

क्या दिया  है इस देश को 


जन्म लिया है जिस  भूमि पर
उस मातृ भूमि का ,सम्मान करो 
अपने अंदर की इंसानियत जगाकर 
राष्ट्र का निर्माण करो 

क्या पाया है इस देश से 
इस की चिंता  मत  किया  करो 
क्या दिया  है इस देश को  
इसका सच्चे दिल से मनन करो 

धन्य  है  ये  भारत  भूमि   
जहा  तुमने जन्म लिया
अपने लिए अबतक जिए 
फिर भी भारतीय होने का सम्मान मिला 
राम -कृष्ण ,गुरुगाबिँद ,बुद्ध,महावीर 
इसी धरती पर अवतरित हुए 
गंगा - यमुना -सरस्वती  और  कबेरी 
इस पवन धरती पर कदम धरे   

एक अरब से अधिक आबादी जिसकी 
उस भारत माता को फिर  क्यों चिंता   हो 
दुश्मन को सबक सिखाने  के  लिए
एक सपूत ही काफी है 
तुमको यह तय करना है दोस्तों 
देश की खातिर कैसे लड़ना है ,मातृ भूमि की 
रक्षा के लिए ,तुम्हे कैसे मारना है 
जो आया है ,वह एक दिन जायेगा 
देश की खातिर जो लड़ेगा 
वही भारत माता का 
सच्चा सपूत कहलायेगा।

                                          ललित "सुमन"

                                                          चीफ एडिटर "दैनिक इंडिया दर्पण "
जीवन का उद्देश्य

ढूंढ रहा हूँ अपने जीवन का उद्देश्य
जिस किसी से भी मिलता हूँ 
वह एक नया मार्ग बतलाता है 
उसे यह नहीं पता ,मंजिल कैसे पाया जाता है ,

अब तक सभी ने ,दौलत का महत्व बताया ,
दौलत के बल पर,शोहरत का रहस्य बताया ,
जीवन का वास्तविक उद्देश्य क्या है 
इस पर उनकी ख़ामोशी ,साफ बताता है 
नहीं पता इन्हे जीवन का क्या है उद्देश्य। 

अनगिनत लोगों से पुछ चुका हूँ 
जीवन का क्या हो उद्देश्य
कोई कहता ,परिवार ,कोई कहता प्रदेश 
कोई बतलाता राष्ट्र ,तो कोई बतलाता विदेश 

अकस्मात मेरे मन में ,यह ख्याल आया 
मैने कलम उठाया और लिख डाला 
यह सन्देश ,रोटी कपड़ा और माकन तो 
मिल जायेगा ,अपने कर्मो से 

शिक्षा -स्वास्थ-न्याय मिले सभी को 
यही हो तुम्हारे जीवन का उद्देश 
यही हो तुम्हारे जीवन का उद्देश 

                                                                                       ललित "सुमन "
                                            चीफ एडिटर "दैनिक इंडिया दर्पण "

Monday 25 August 2014

करोल बाघ जोन भवन निर्माण विभाग में भ्रष्ट्राचार
जे. ई. बदल जाता लेकिन अवैध निर्माण नहीं रुकता  

Tuesday 19 August 2014

"प्रभु आये थे ,दे गए संदेश "


सूर्य भी उगता है ,हमारे इशारे पे 
चन्दन भी उगता है हमारे इशारे पे 
अस्त होने से पहले ,पुछता  है
अस्त हो जाऊं "सुमन ".
    हम  तो कहते है यारो 
    हम भी चलते है किसी के इशारे पर 
    वह खुदा है ,वह ख़ुदा है ........ 

तुमने देखा है ईश्वर को 
क्या तुमने देखा है अल्ला को 
तुमने देखा है गुरुगोविंद को 
क्या तुमने देखा है ईसा को 
यह सिर्फ एक ,विश्वास व आस्था है 
फिर तुम्हे अपने  
नेक कर्मो पर विश्वास
क्योँ नहीं अपने 
कर्म फलो पर 
आस्था क्यो नहीं।
मंदिर -मस्जिद,चर्च 
 गुरुद्वारा  के नाम पर  
तू लड़ता है 
इसी  पर तू मरता है 
एक दूसरे से करता है तू नफरत
 लेकिन सभी प्रभु ने तो प्यार का सुनाया है पैगाम। 

क्यों नहीं ,तुम्हे अपने कर्मो पर विश्वास 
क्यों नहीं ,रखता 'कर्मफल ' पर आस्था 
कब -तक, नफरत फैलाते रहोगे 
देवो के अस्तित्व पर ,सवालिया निशान लगाकर  
हमने ईश्वर,अल्ला,वाहेगुरु व ईसा को देखो है
वे कह रहे थे तू मेरा यह पैगाम जन-जन तक पंहुचा दे ,

जो जाति -पात ,ऊच-नीच व क्षेत्रीयता फैलता है 
वो पुरुषोत्तम राम नहीं ,मानवता का दुश्मन रावण है। 

बड़े आहत थे अल्ला वाहे गुरु ईसा
कह रहे थे ,इन्हे मेरा पैगाम सुना दो 
हमने प्यार करना दीन दुखियों को 
मदद करना ,बीमारो की सेवा करने का 
सन्देश दिया था ,अत्याचार ,दोहन ,शोषण 
के खिलाफ संघर्ष किया था ,हमने कभी 
नफरत का पैगाम नहीं दिया ,फिर 
हमारे नमो का इस्तेमाल कर ये मुर्ख 
क्योँ मानवता की धज्जियाँ उड़ा रहे है ,

देना उन्हें यह पैगाम अगर पडोसी भूखा 
सो रहा है और तुम भले स्वादिष्ट व्यंजन समझ 
कर खा रहे हो तो वह भोजन तुम्हारे लिए विष है, 

देना उन्हें यह पैगाम अगर कोई लाचार
कराह रहा है और तुम हंस रहे हो तो समझो 
तुम मेरा उपहास उड़ा रहे हो ,अगर 
वास्तव में तुम्हे ईश्वर -अल्ला -वही गुरु व ईसा 
से प्रमे है ,उनपर विश्वास है ,धर्म में आस्था है 
तो यह प्रतिज्ञा करो 
           जाति धर्म ,वर्ग ,भेद के नाम पर हम 
नहीं लड़ेंगे  ," मानवता " की रक्षा खातिर मरना पड़ा 
तो हम मरेंगे ,सत्य -अहिंसा के पथ पर चलकर 
प्रभु तेरी चरणों में हम आयेंगे,प्रभु चरणो में अपना 
जीवन ,सादाजीवन -उच्च विचार के साथ बिताएंगे। 

             प्रभु आये और अपना सन्देश दे गये ,हमने 
तुम्हे बता दिया ,बाकीं अब तुम्हारी इच्छा।

                                                                  ललित "सुमन"

Monday 18 August 2014

"परायों"  को  भी "अपना" कर 

गिला -शिकवा , छोड़  दो  यारों
सबको , एक   दिन  जाना है।
अपना  पराया , कौन  है जग  मै
सबको  एक दिन  जाना है।
मुट्ठी  बंद  करके  तुम   आये  थे
खाली हाथ ही जाना है
अपना  पराया  कौन  है  जग  मई
सबको  एक  दिन  जान है।
इतराने दो उनको यारों
जो दौलत  पा   कर  इतराते  है
इतराने दो उनको  यारों
जो  शक्ति  पाकर  ,रौब दिखाते है
इतराने  दो  उनको   यारों
जो  अपना वैभव दिखाते है
अपना पराया कौन है जग  में
सबको एक दिन जाना है।

बता सको तो नाम बताओ
कौन -कौन दौलतमंद यहाँ जनम लिया
बता सको तो नाम बताओ
कौन शक्तिमान अब याद रहा
बता सको तो नाम बताओ
किसकी वैभव जिन्दा  है
इतिहास उसी को याद रखता
जिसके आँगन अच्छाइयां पलटी है
जो देता क़ुरबानी ,वाही अमित छाप छोड़ता है
बुराइयों से लड़कर ,अच्छाइयों का पुष्प
खिलताhai ,खुशबू उसकी सदा सदा
करो और फैलती है
अपन पराया कौन है  जग में
सबको एक दिन जाना है।

इतिहास भरा है शूरवीरो से
कायरो को कब ,कौन पूजता है
जन्मmila है "मानव" का तो
"मानवता" की तू रक्षा कर

अपना पराया का भेद मिटा कर
परायों को भी अपना कर
गिला शिकवा छोड़ दो यारो
सबको एक दिन जाना है

अपना पराया कौन है जग में
सबको एक  दिन जाना है...
                                                 ललित "सुमन"



"कर्मपथ - कर्मपथ"

जीवन को समर्पित
एक ही मंत्र ,कर्म पथ -कर्म - पथ

बचपन से लेकर अब तक
विभिन्न  राहो  पर, चलते हुए
मंजिल  तक, पहुचने  को आतुर
मेरा yah मन ,कहता  है -पथिक
तू निरंतर बढ़ता चल ,यही है तेरा कर्मपथ
अच्छाइयों  के फूल ,खिलाना  है तुम्हे
बुराइयों  के  काटो  से  ,करना  होगा  संघर्ष
रुकना  नहीं  पथिक ,थकना  नहीं  पथिक
बुराइयों  के  कांटे  ,तुम्हे  पथ  पथ  पर  रोकेंगे
अच्छाइयों  के  बल  पर  चलता  रह
अपने  कर्म  पथ  अपने  कर्म  पथ
श्री  कृष्ण  हो  या  श्री  राम
ईसा  हो  ,गुरु गोविन्द  या  मो. हजरत
सभी  को  करना  पड़ा  है संघर्ष  ,बुराइयों  से
तब  ही  खिला  है ,अच्छाइयों  का  फूल
चारों  दिशाओं में फैली  है उसकी  सुगंध
पथिक  चलता  रह  ,कर्म  पथ  -कर्म  पथ

सब जानते   है ,जो  आया  है वह  जायेगा
भरम  में  उलझ  कर  ,भूल  जाते  है कर्म  पथ
अच्छाइयों  को  त्याग  ,
बुराइयों   को  आणिक   स्वार्थवश  कर  लेते  है आत्मसाध  ,
जीवन  समाप्त   हो  जाता
उन्हें  नहीं  मिल  पता  ,सुगंध
पथिक  ,तू - मत  भटक
चिरकाल  तक  ,याद  करेगी  धरा
तुम्हारे  संघर्ष  को  ,तू  सदा  बढ़ताचल  
कर्म  पथ - कर्म  पथ - कर्म पथ !                  

                                           ललित "सुमन"

Monday 17 February 2014

सम्पादकीय:- उपराज्यपाल पर अब सारी जिम्मेदारी

दिल्ली विधानसभा  चुनाव परिणाम आने के साथ ही यह स्पष्ट हो चुका था कि दिल्ली की आवाम ने दिल्ली को बीच मझधार  में लाकर खड़ा कर दिया है और कांग्रेस-भाजपा को दरकिनार कर एक नइ पार्टी आप पर भी हद से अधिक भरोसा नहीं किया। भाजपा को 32, आप को 28 और कांग्रेस को सत्ता से दूर करते हुए 8 सीट पर समेट कर अपने आक्रोश की ज्वाला को भले शांत किया लेकिन सभी पार्टियों को अग्नि  परीक्षा देने के लिए विवश कर दिया।  दिल्ली के उपराज्यपाल डा. नजीब जंग ने बड़ी पार्टी के नाते भाजपा को आमंत्रित किया लेकिन भाजपा बहुमत नहीं होने की बात कह सत्ता बनाने से इंकार कर दिया। दूसरी बड़ी पार्टी आप को कांग्रेस ने समर्थन दिया लेकिन आप ने समर्थन पत्र  प्राप्त होने के बावजूद जनता से रायसुमारी की और सरकार बन गइ। उपराज्यपाल ने पद एवं गोपनीयता की शपथ आप मंत्री मंडल को दिलाकर अपने कर्त्तव्य  का पालन किया।
 49 दिनों के अंदर कइ घटनाक्रम घटित हुइ और तरह-तरह के मसले आमलोगों के सामने आये जो आज तक दिल्ली की जनता ने दूसरे प्रदेशों के संदर्भ में मीडिया के माध्यम  से देखा व सूना था लेकिन पहली बार वे अपने राज्य में अपने आंखों से देखा कि सत्ता और सत्ता संचालन के दरम्यान दिल्ली की सरकार के सामने किस-किस प्रकार की समस्याएं आती है और एक मुख्यमंत्री  को किस प्रकार संघर्ष करके दिल्ली की जनता के हीत में विकास कार्य का निष्पादन करना पड़ता है। दिल्ली में पांच वर्ष भाजपा ने शासन किया लेकिन उसे तीन मुख्यमंत्री  बनाने पड़े। मदन लाल खुराना के त्याग व तपस्या को दरकिनार करना भाजपा को इतना भारी पड़ा कि आज तक वह सत्ता वापसी के लिए खून-पसीना बहा रही है लेकिन दिल्ली की जनता का दिल नहीं जीत पा रही है। मदन लाल खुराना ने हवाला कांड डायरी में नाम आने पर आडवाणी के साथ पद त्याग कर अपने नैतिकता व उच्च चरित्रा का परिचय दिया, लेकिन भाजपा ने अपने उस कर्मयोगी को दरकिनार कर दिल्ली की जनता का विश्वास खो दिया।
 कांग्रेस को दिल्ली की जनता ने मौका दिया। शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार तीन बार बनी दिल्ली ने विकास किया, जो साफ नजर आ रहा है, लेकिन इस बार दिल्ली की जनता ने न सिर्फ  कांग्रेस को आठ सीट पर समेट दिया बल्कि  मुख्यमंत्री  शीला दीक्षित को पढ़े-लिखे वर्ग  ने नकार दिया और उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा, कारण स्पष्ट था। दस वर्ष शीला दीक्षित सरकार ने जमकर काम किया लेकिन तीसरी बार चुनाव जीतने के उपरांत कांग्रेस ने युवा वर्ग  के लिए, आमलोगों के लिए वह कार्य नहीं किया जिसकी उम्मीद दिल्लीवासी कर रहे थे। मंहगाइ-भ्रष्टाचार के साथ कांग्रेस की आपसी गुटबाजी से दिल्ली का आम जनता त्रस्त रही, उसका सूनने वाला कोइ नहीं था, भाजपा-कांग्रेस के नेता अपने-अपने क्षेत्र  में सांठ-गांठ कर लिया, निगम में भाजपा लुटती रही, प्रांत में कांग्रेस, बेचारी जनता पिसती रही, तत्कालीन उपराज्यपाल, तेजेन्द्र खन्ना भी कांग्रेस व भाजपा के कुछ विधायक  को अपने पक्ष में कर आम जनता की हित से अधिक शीला सरकार को कमजोर व भाजपा-कांग्रेस नेताओं को संरक्षण देते रहे। दिल्ली की जनता आखिर कहां अपनी फरियाद लेकर जाये। वह पिसती रही, खामोश रही, अन्दर-अन्दर सुलगती रही और जब अन्ना हजारे का आन्दोलन हुआ सड़कों पर उतर आयी। अरविन्द केजरीवाल ने विश्वनाथ प्रताप सिंह की तरह जनता के आक्रोश को समझा और राजनीतिक आखाड़े में कुद गये।
 सच्चाइ यही है इसे जिसको जिस रूप में मुल्यांकन करना है, विवेचना करना है करता रहे। भाजपा ने मदन लाल खुराना को दरकिनार कर गुटबाजी के माध्यम  से सत्ता तो प्राप्त कर, सत्ता सुख भोग लिया लेकिन कभी सशक्त विपक्ष की भूमिका अदा नहीं किया अगर वह सशक्त विपक्ष की भूमिका अदा किया होता तो 2009 के चुनाव में वह सत्ता में वापस आ सकती थी। भाजपा पुन: बार-बार वही गलती दुहरा रही है, कभी विजेन्द्र गुप्ता को आगे करती है, कभी विजय गोयल को आगे करती है, कभी हर्ष वर्धन  को आगे करती है। खुराना के बाद अगर भाजपा में प्राण अगर किसी ने फूंका  तो वह विजेन्द्र गुप्ता है, जुनियर-सीनियर की लड़ाइ में भाजपा जनता के दिलों में विश्वास स्थापित करने में नाकामयाब रही। क्या कारण है दो वर्ष पुरानी एक युवाओं की टीम इतनी-पुरानी कांग्रेस व भाजपा को चुनौती देने में न सिर्फ कामयाब रही बलिक 28 सीट प्राप्त कर दिल्ली में 49 दिन सरकार चला कर पुन: कांग्रेस-भाजपा को कठघड़े में खड़ा कर एक नइ पारी की शुरूआत करने पूरे देश में निकल पड़ी है। दिल्ली की जनता या देश की जनता सब कुछ देख रही है, वह सब कुछ समझती है, जो पुराने लोग हैं वे ये जानते होंगे कि जब देश आजाद हुआ था तो कइ नेता चुनाव के पक्ष धर नहीं थे लेकिन नेहरूजी ने उस वक्त चुनाव कराया, जनता पर भरोसा किया और देश की जनता भले, भूखे पेट रहे, वस्त्र न हो, इलाज के पैसे न हो लेकिन अपने राष्ट्र के स्वाभिमान के लिए अपना बलिदान देने में कभी पीछे नहीं रहा है, इतिहास इस बात का गवाह है आज भारत एक विशाल लोकतांत्रिक राष्ट्र है तो इसका प्रमाण यही है।
 अरविन्द केजरीवाल एवं उनका मंत्रिमंडल  नये लोगों का संगठन है, पहली बार सभी चुनकर आये थे, क्या हमारे पुराने विधयकों, मंत्रियों का यह दायित्व नहीं बनता था कि वे उन्हें यह बताते की एक राज्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए बजट की आवश्यकता होती है, विकास की गति बनाये रखने के लिए इस प्रकार की योजना बनानी पड़ती है, लेकिन सरकार बनने के साथ ही राजनीति शुरू हो गइ, सरकार को घेरो, बदनाम करो, उलझाओ। अगर पुराने नेता राजनीति इसे कहते है तो आम आदमी पार्टी ने भी वही किया जो वे करते है तो फिर इसमें गलत क्या है। अन्य नेता मीडिया व समाचार पत्रों  में सुर्खियां  बनाने के लिए मीडिया का उपयोग करे तो सही, आम पार्टी बोले तो गलत, आप संविधन की उपेक्षा करो तो सही, आम पार्टी करे तो गलत आखिर ऐसा क्यों। गलत तो गलत है चाहे वह कोइ करे। अरविन्द केजरीवाल ने विधानसभा  के अंदर कांग्रेस भाजपा पर सीधा  आरोप लगाया कि अम्बानी से भाजपा कांग्रेस दोनों चंदा लेती है उसके खिलाफ एफआर्इआर का उन्होंने आदेश दिया, इसलिए दोनों दल मिलकर जनलोकपाल बिल सदन में नहीं आने दे रहे। यह पूरी तरह राजनीतिक विचार कहा जा सकता है लेकिन यही आरोप तो दिल्ली में भाजपा, कांग्रेस सरकार पर व केन्द्र में भाजपा, कांग्रेस की सरकार पर इसी तरह की अनेकों आरोप बेगैर सिर-पैर की लगाती रही है। विश्वनाथ प्रताप सिंह ने जिस बोफोर्स घोटाला के नाम पर कांग्रेस को सत्ता से हटाया था वही बोपफोर्स तोप कारगिल युद्ध में भारतीय सेना का मस्तक ऊंचा किया था।
 सिख दंगा का मामला बीस वर्षों  से दिल्ली में 36 रहा था, भाजपा ने भी शासन किया, अकाली उनके मित्र  है लेकिन उन्होंने एसआर्इटी क्यों नहीं बनवाया। क्या भाजपा इसका जवाब दिल्ली की जनता को देगी। केजरीवाल ने राजनीति ही किया हो लेकिन सिख विरादगी के घाव पर मरहम तो लगाया, आपने ऐसा करना अपना कर्त्तव्य  क्यों नहीं समझा। पहले भी उपराज्यपाल थे, डा. नजीब जंग ही एसआर्इटी के लिए क्यों?  दिल्ली के उपराज्यपाल डा. नजीब जंग के पास एक बेहतरीन मौका है। इश्वर जब किसी से अति प्रसन्न होता है तो उसके सामने चुनौती पेश करता है ताकि वह अपनी दक्षता व क्षमता का प्रयोग कर इतिहास में अपने नाम दर्ज करा ले। डा. नजीब जंग को खुदा ने यह अवसर दिया है, वे राष्ट्रपति के दिल्ली में उत्तराधिकारी है, भूमि, पुलिस व कानून व्यवस्था सभी कुछ उनके पास है। विगत 20 वर्षों  में दिल्ली में जिनते भ्रष्टाचार हुए है उसकी निष्पक्ष जांच कराकर दिल्ली की जनता के दिल व दिमाग में यह बैठा दें कि कानून अभी जिंदा है। दिल्ली में जितने भूमि घोटाले हुए है, डीडीए प्लाट, आदि पर भू-माफियाओं  ने कब्जा कर रखा है उसे मुक्त कराकर इतिहास रच दें, दिल्ली की सड़कों पर और अपने घरों में लोग यह महसूस करें कि कोइ उनकी सुरक्षा के लिए सजग है तो क्या दिल्ली में राम-राज्य नहीं आ जायेगा।  उपराज्यपाल डा. नजीब जंग प्रशासनिक अधिकारी, रंगमंच के कलाकार, शिक्षाविद होने के साथ-साथ दिल्ली के उपराज्यपाल है और इश्वर ने उन्हें राजनीतिक दक्षता का परिचय देने का अवसर दिया है यह किसी कुदरती करिश्मा से कम नहीं है। वर्ष-2014-15 का बजट, बिजली कम्पनियों को पैसा, जल बोर्ड के विकास  प्रोजेक्ट, दिल्ली विश्वविधालय में गर्वनिगबडी विधायक  फंड, आदि मुददें रोजमर्रा का मुददा है लेकिन सबसे बड़ी बात है दिल्ली वासियों के दिल में कानून के प्रति विश्वास व संविधन के प्रति आस्था का विश्वास कायम करना। यह बेहतरीन मौका डा. नजीब जंग को समस्याओं के निदान के साथ इतिहास रचने के लिए कुदरत का तोहफा है।
ललित "सुमन" 

Thursday 16 January 2014

दिल्ली सिर्फ केजरीवाल का?

केजरीवाल सरकार अगर वास्तव में आम आदमी की भला चाहती है तो उन्हें संगठित अपराध्, संगठित भ्रष्टाचार पर प्रहार करना होगा तभी दिल्ली का सामुहिक विकास सम्भव है, आम लोंगो के बीच उनकी सरकार की छवि लोकनायक के रूप में स्थापित होगा, अन्यथा देश की जनता पुन: नये देवदुत का इंतजार करेगी। यह देश व दिल्ली प्रदेश सिर्फ केजरीवाल का नहीं है, इसे सभी को मिलकर बेहतर बनाना होगा, यह किसी दबाव में नहीं, अंर्तआत्मा की आवाज पर होनी चाहिए कि आने वाली पीढ़ी को हम क्या देकर जाने वाले हैं।  

भारत की राजधानी  दिल्ली व केन्द्रशासित प्रदेश दिल्ली सिर्फ केजरीवाल का है, ऐसा ही लगता है। 15 वर्षों से लगातार प्रदेश पर शासन करने वाली कांग्रेस व पूर्व के वर्षो में पांच वर्ष शासन कर चुकी भाजपा, लगातार एक माह भी नहीं गुजारी, आम आदमी पार्टी के मुखिया अरविन्द केजरीवाल की सरकार से पुछ रही है कि दिल्ली में पानी की समस्या का क्या हुआ, बिजली व्यवस्था का क्या हुआ, भ्रष्टाचार निदान का क्या हुआ, ला एण्ड आर्डर का क्या हुआ, काश्मीर मुददे पर क्या सोच है, नक्सल मुदे पर क्या राय है, देश की आर्थिक नीति पर आम आदमी पार्टी की क्या नजरिया है, बड़े मकान, छोटे मकान, सुरक्षा लेंगे-नहीं लेंगे आदि-आदि अनेको सवाल किया जा रहा है।
  आप अगर एक मकान से, दुसरे मकान में शिफ्ट  होते हैं तो उसे व्यवस्थित  करने में छ: महिना लग जाता, फिर  भी कई  समान नहीं मिलते। आम आदमी पार्टी में सिर्फ विन्नी एक मात्र   नेता है जो निगम पार्षद रह चुके हैं और सारा देश यह देख रहा है कि ''विन्नी'' जिददी बच्चे की तरह किस प्रकार अड़े है कि हमें भी खेलने दो, नहीं तो मैदान खोद डालूंगा। भारत की जनता इस बात का अंदाजा सरलता से लगा सकती है कि आम आदमी पार्टी का मैदान खोदकर भ्रष्टाचारनिदान, विकास के कार्य को अवरुद्ध  रखा जाय तो इससे किसका भला होने वाला है।
    दिल्ली प्रांत या यह देश अकेला अरविन्द केजरीवाल का नही है, एक अरब से अधिक की आबादी वाले इस मुल्क में से अरविन्द केजरीवाल भी एक नागरिक हैं, लेकिन अरविन्द केजरीवाल की नियत है कि यह देश भ्रष्टाचार मुक्त हो, और नीति यह है देश पुन: सोने की चिडि़या बने, दुध् की नदियां बहे।
कांग्रेस, भाजपा, सपा, बसपा, राजद, जदयू, सी.पी.आर्इ.एम, अन्ना द्रमुक, एनसीपी, त्रिनमूल आदि अनेकों पार्टी की तरह ''आम आदमी पार्टी''  भी एक है। देश के कोने-कोने में बनी क्षेत्रीय पार्टी या अपने को राष्ट्रीय पार्टी कहने वाले क्या इस देश की जनता को यह बताएंगे कि किस पार्टी ने एक माह के अन्दर ''आम आदमी पार्टी'' की तरह अपने घोषणा पत्रों  के मुख्य मुद्वों को इस प्रकार अमली जामा पहनाने का प्रयास किया है।
       जो काम करता है गलती भी, भूल भी उसी से होती है, गलती की सजा व भूल  का सुधार  कर आगे बेहतरीन कार्य किये जा सकतें हैं लेकिन जो काम ही न करे, उसे क्या कहा जाएगा। वह देश का, समाज का, आम व्यकित का शुभचिंतक है या दुश्मन।
      कांग्रेस पार्टी इस देश पर सबसे अधिक शासन किया है। कांग्रेस पार्टी ने इस देश में अनेकों विकास कार्य किये है, भारत आज अगर विकासशील देश से आगे विकसित राष्ट्र की ओर कदम बढ़ा रहा है तो इसका अर्थ है, कांग्रेस ने राष्ट्रहीत, समाजहीत व आम जन के हीत में कार्य किया है, यह सत्य है कि कांग्रेस के कुछ नेताओं ने भ्रष्टाचार को बढ़ाया, जमकर राष्ट्र को लूटा, अपनी सेहत बनाया, इन्हें दंडित किया जाना चाहिए। लेकिन यह भी सत्य है कि सूचना का अधिकार, खाध सुरक्षा अधिकार, भूमि अधिग्रहण विधेयक  जैसे मुद्वों के अतिरिक्त भ्रष्टाचार से लड़ने के लिए लोकपाल विधेयक  पास कराने में समप्रग सरकार कामयाब हुई  है। हो सकता है, कुछ मुद्वों में और सुधार की आवश्यकता हो, इसे दुर किया जाना चाहिए, यह समप्रग सरकार की आम जनता के प्रति जिम्मेदारी है।
    समप्रग सरकार बनने से पूर्व विपक्ष भी सत्ता सुख भोगा है, अटल बिहारी वाजपेयी, एच.डी. देवगौड़ा, इन्द्र कुमार गुजराल, वी.पी. सिंह, चन्द्रशेखर आदि भी केन्द्र की सरकार में प्रधानमंत्री  रह चुके हैं, क्या उस वक्त भारत भ्रष्टाचार मुक्त था, देश में किसान ने आत्महत्या नहीं किया, नारी उत्पीड़न के मामले नहीं थे, बेरोजगारी नहीं था, सभी ने अपने स्तर से राष्ट्र निर्माण का प्रयास किया, उसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए समप्रग सरकार भी लगातार राष्ट्र उत्थान में लगी है। देश के आवाम को लगेगा कि समप्रग सरकार अपने दायित्व निर्वाह में नाकामयाब रही है तो जनता उसे सत्ता से विमुख कर देगी लेकिन नरेन्द्र मोदी भाजपा के पी.एम. इन वेटिंग करोड़-करोड़ रूपये सभाओं पर खर्च कर सिर्फ अपनी छवि सुधरने व भारत सरकार की छवि देश व विदेश में खराब कर रहे हैं, यह राष्ट्रहीत में नहीं है।
     नरेन्द्र मोदी को देश को यह बताना चाहिए कि मंहगाइ दर इस नीति से कम किया जा सकता है, भ्रष्टाचार को ऐसे नियंत्रित किया जा सकता है, बेरोजगारी कम करने के लिए इस प्रकार रोजगार के साधन उत्पन्न किये जा सकते हैं, देश को विकसित करने के लिए यह कदम कारगर हो सकते हैं, कृषक की भलाइ के लिये उनका विजेन यह है, न्याय व्यवस्था इस प्रकार सुदृढ़ हो सकती है, भारत की संस्कृति व सभ्यता को इस प्रकार अक्षुण्य रखा जा सकता है, लेकिन मोदी को तो सिर्फ गुजरात, व अपनी छवि बेहतर नजर आ रही।
    सवाल यह उठता है कि हाइटेक मंच बनाने पर जो राष्ट्र का धन खर्च हो रहा, क्या वह कालाधन  है, भाजपा का राजनीतिक फंड है, या देश को अस्थिर  करने वालों तत्वों से एकत्रा किया जा रहा है, वह कौन लोग हैं और केन्द्र में सरकार बनने पर वह इसकी क्या कीमत वसूल करेगा, मोदी उसके साथ क्या समझौता कर रखें हैं।
    देश का प्रधानमंत्री  नरेन्द्र मोदी बनें, राहुल गांधी  बनें, केजरीवाल बनें, प्रियंका गांधी  बनें, ममता बनर्जी बनें, मनोहर पारिक बने हमें क्या, अंतर पड़ता है। 18 घंटे काम, मुझे आज भी करना पड़ता है उस वक्त भी करना पड़ेगा। यह सत्य है कि भारत अगर भ्रष्टाचार मुक्त राष्ट्र बनेगा, मंहगाइ पर नियंत्रण  हो जायेगा तो समाज के अंतिम पंक्ति  में खड़े व्यकित भी राहत की सांस लेंगा।
     बात शुरू हुर्इ थी केजरीवाल से और पहुंच गइ राष्ट्र पर । केजरीवाल को काम करने का मौका मिलनी चाहिए और केजरीवाल को भी एक निर्भीक, निष्पक्ष राजनेता की तरह एक-एक कर समस्याओं के निदान की दिशा में कदम-दर-कदम बढ़ाना चाहिए। केजरीवाल को सर्वप्रथम दिल्ली को भ्रष्टाचार मुक्त करने की दिशा में, योजनावद्व तरीके से प्रयास करना चाहिए था, लेकिन दिशा भटकता नजर आ रहा है।
   व्यकितगत अपराध् व संगठित अपराध् व भ्रष्टाचार में अंतर है। केजरीवाल सरकार को इसे समझना होगा। अपराध्-अपराध् है, भ्रष्टाचार-भ्रष्टाचार है लेकिन दोनों में अंतर है। व्यक्तिगत  अपराध् और व्यक्तिगत भ्रष्टाचार से एक व्यक्ति  या परिवार प्रभावित होता है लेकिन संगठित भ्रष्टाचार व संगठित अपराध् से समाज व राष्ट्र प्रभावित होता है। अगर विषैले पेड़ को जड़ समेत उखाड़ दिया जाय तो व्यक्ति, समाज व राष्ट्र का स्वत: भला हो जाएगा।
     केजरीवाल सरकार अगर वास्तव में आम आदमी की भला चाहती है तो उन्हें संगठित अपराध्, संगठित भ्रष्टाचार पर प्रहार करना होगा तभी दिल्ली का सामुहिक विकास सम्भव है, आम लोंगो के बीच उनकी सरकार की छवि लोकनायक के रूप में स्थापित होगा, अन्यथा देश की जनता पुन: नये देवदुत का इंतजार करेगी। यह देश व दिल्ली प्रदेश सिर्फ केजरीवाल का नहीं है, इसे सभी को मिलकर बेहतर बनाना होगा, यह किसी दबाव में नहीं, अंर्तआत्मा की आवाज पर होनी चाहिए कि आने वाली पीढ़ी को हम क्या देकर जाने वाले हैं।















ललित ''सुमन'', प्रधान संपादक 
अध्यक्ष, दिल्ली प्रदेश 
आल इंडिया स्मॉल एण्ड  मीडियम न्यूज़ पेपर्स 
फेडरेसन ( रजि.)  

Monday 13 January 2014


"दिल्ली में अब नहीं लगेगा जनता दरबार" : अरविंद केजरीवाल

 "सही कदम  है ,भीड़ एकत्र होने से समय कि बर्बादी होती है, काम करने के लिए दृढ़ इच्छा शक्ति व दर्पण की तरह सच्चाई दिखाने का होसला होना चाहिए".... ललित 'सुमन' 

Thursday 9 January 2014

चाय बेचने वाला....


चाय बेचने वाला.... 

चाय बेचने वाला ही क्यो? कोई भी भारतीय नागरिक, भारत का प्रधानमंत्री  बनने का अधिकार  रखता है। नरेन्द्र मोदी तो आम आदमी से खास व्यक्ति हो चुके हैं, उन्होनें अपनी दावेदारी प्रधानमंत्री पद के लिए भाजपा से पेश करवाया है, तो इसमें हर्ज क्या है। प्रत्येक वह व्यक्ति सपना पालता है जिसका पेट भरा होता है। आम आदमी तो, ‘रोटी-कपड़ा-मकान, ईलाज, रिश्तेदारी, भाईचारा’ में ही इस कदर उलझा रहता, कि उसे पता ही नही चलता बचपन-जवानी-बुढ़ापा और कब मौत हो गई, उसके मरने के बाद यह चर्चा होती है, बड़ा नेक व्यक्ति था, मिलनसार था, लोगों के लिए मददगार था, बहुत अच्छा लेखक, कवि, पत्रकार ...न जाने क्या-क्या गुण उसके अन्दर थे, स्वाभिमानी था, देशभक्ति की ऐसी भावना थी कि जन-गण-मन की राष्ट्रीय धुन कही पर सुनाई पड़े, वही खड़ा हो जाता था, आज वह हमारे बीच नहीं है, लेकिन उनकी याद हमेशा हमें सताती रहेगी। ईश्वर उनकी आत्मा को शांति दें, अपनी चरणों में प्रभु स्थान दें। इस दुःख की घड़ी में प्रभू उनके परिवार को यह दुःख सहने की शक्ति प्रदान करें। आम आदमी इसी प्रकार आता है, और चला जाता है। कई तो, ऐसे चले जाते कि लोंगो को पता भी नहीं चलता, रामदीन इस दुनिया से कब चला गया।
   यह है आम आदमी। नरेन्द्र मोदी, राहुल गांधी, नीतिश, लालू, मुलायम जैसे व्यक्ति तो अब इस देश के खास व्यक्ति हैं, अब वे आम आदमी की समस्याओं से उफर उठ चुके हैं, उन्हे सपने देखने का पुरा अधिकार है। दिल्ली में आम आदमी पार्टी की सरकार बन चुकी है, अरविन्द केजरीवाल भी उस पंक्ति में आकर खड़े हो गये हैं, जिन्हें सपना देखने का पुरा अधिकार  है। उनकी जो रोज-मर्रा की आवश्यकता है, वह तो वह आम आदमी द्वारा प्राप्त टैक्स की राशि से स्वतः ही पुरा हो जाएगा, जैसे अन्य खास व्यक्तियों का होता है। केजरीवाल को यह तय करना है कि पहले दिल्ली के आम लोगों  का, जो सपना है, उसे वे पुरा करते हैं या मुख्यमंत्री  के बाद प्रधानमंत्री  का सपना पाल लेते हैं।
   देश को बेहतर प्रधानमंत्री मिले, यह प्रत्येक भारतीयों का सपना है, मोदी-राहुल-केजरीवाल......जिनमें यह दक्षता है, जो इस देश के आम आदमी को सपना देखने लायक बना सकतें हैं, उनका स्वागत है।
   चाहें वह, चाय बेचने वाला हो, शहजादा हो या कोई और क्यों न हो, देश के करीब साढ़े बहत्तर करोड़ मतदाताओं को तो सिर्फ ऐसा व्यक्ति चाहिए, जो आम व्यक्ति को सपना देखनें लायक बना सके, वही इस देश का प्रधानमंत्री बनें।
  भाजपा के पी.एम. इन वेटिंग नरेन्द्र मोदी को देश को यह बताना चाहिए कि आप जिस गुजरात प्रदेश के तीन बार मुख्यमंत्री  चुने गये हैं, वहां आम आदमी के लिए केन्द्र सरकार ने जो ‘मनरेगा’ कार्यक्रम चला रखा है, वह धरातल  पर क्यों नही उतर रहा! क्या सच में आम आदमी के लिए दिया गया ‘मनरेगा’ का फंड, दुसरे कार्यो में स्थानांतरित किया गया है! क्या संसदीय समिति के निर्देश पर केन्द्र सरकार ने, कई दफा आपको पत्र लिखा। आम आदमी के लिए दिए गये पैसे का, दुरूपयोग हुआ और हो रहा है, गुजरात के मुख्यमंत्री  ने उस अधिकारी  के खिलाफ क्या कार्रवाई की, जो आम आदमी के पेट पर प्रहार करने की साजिश रची है। साथ ही आपको यह बताना चाहिए कि अगर देश के मतदाताओं ने आपको प्रधानमंत्री के लिए समर्थन दिया तो, आप रास्ट्रहीत में क्या-क्या करेंगे, जिससे इस देश का आम आदमी, सपना देखने की स्थिति में पहुंच जायेगा।
   कांग्रेस अगर राहुल गांधी  को प्रधानमंत्री पद का उम्मीदवार बनाती है तो राहुल गांधी  भी देश के आम आदमी को यह बताये कि पांच वर्षो के लिए उनकी राष्ट्र विकास दृष्टि क्या है, आम आदमी क्या सपना देखने लायक बन सकेगा, उसकी आत्मा यह स्वीकार करेगी कि, ‘भारत की तस्वीर और आम लोगों की तकदीर बदलने का जज्बा आपके अंदर है।’
इसी प्रकार जिन-जिन खास व्यक्तियों ने प्रधानमंत्री बननें का सपना देखा है, वे इस राष्ट्र के आम आदमी को बताये कि राष्ट्र निर्माण की दिशा में उनका विजेन (दृष्टि) क्या है। जाति-धर्म, अगड़ा-पिछड़ा, भाई-भतीजावाद इस लोकसभा चुनाव में नही चलेगा। भारतीय मीडिया (इलेक्ट्रोनिक, प्रिंट व सोशल मीडिया)  काफी सशक्त हो चुका है, ये बातें प्रधानमंत्री पद का मुंगेरी लाल के हसीन सपने पाले, खास आदमी को समय रहते समझ में आ जानी चाहिए।

नफरत की दिवाल गिराकर, बढ़ों राष्ट्र निर्माण की ओर,
आने वाली पीढ़ी, यह न बोले, नेताओं की सोच ही, गंदी थी।
सपने देखने की आजादी हो, अराजकता फैलाने की नहीं
अपने-अपने हिस्से का, हिन्दुस्तान बेचने का नहीं
अपने-अपने हिस्से का, हिन्दुस्तान बचाने की जदों-जहद हो!

.............................................................................ललित 'सुमन'

Wednesday 8 January 2014

कहां खो गया, मेरा बचपन...



कहां खो गया, मेरा बचपन...

ढूढ़ता हूं, कहां खो गया, मेरा बचपन
बुढ़ापे की इस दहलीज पर।
मां जब चिमटे से, पकड़ कर रोटी,
दुध के कटोरे में डाल, प्यार से पुचकारती
कहती, खा ले बेटा, तुम अब बड़े हो रहे हो।
पिताजी की वह आवाज, अभी तक सोया है
क्या स्कुल नही जाना, सात बज चुके हैं।
बड़े भाई-बहनों की ठिठोली, होमवर्क नहीं किया है।
दोस्तों को क्रिकेट का बल्ला लिए, खिड़की
से, धीमी आती आवाज, पड़ोसी के मोहल्ले के
बच्चों से, पापिन्स की शर्त पर, आम के बगीचे
में, जीत की, शर्त लगी है।
ढूंढ़ता हुं, कहां खो गया, मेरा बचपन
बुढ़ापे की इस दहलीज पर।
गर्मी की छुट्टी, आम का बगीचा
खेतो में काम करते मजदूर, मिट्टी में लोढ़ते उनके बच्चें
कपड़े उतार, तालाब में तैरते बच्चों की
झुण्ड, रोक नही पाता अपने-आप को
उतार फेकता, अपना वस्त्र, कुद जाता तालाबों में
आजाद पंक्षी की तरह, वगैर कुछ सोचे
ढूंढ़ता हुं, कहां खो गया, मेरा बचपन
बुढ़ापे की इस दहलीज पर।
सब कुछ छोड़ आया, अपने गावों में
यह सोचकर, कामयाब होकर लौटूंगा
अपने गांव, फिर से आम के बगीचे में
मन-भर तैरूंगा, तालाब में, खेलूंगा दोस्तों के साथ
इसी उम्मीद में, कब गुजर गया
बचपन-जवानी, अब ढूंढ़ता हूं
कहां खो गया, मेरा बचपन।
बुढ़ापे की इस दहलींज पर।

पुछता है बेटा, पापा क्यों चुप हो
अकसर आप टेंनशन में, क्यों दिखते हो
बात-बात पर क्यों, चिखतें हो।
मकान, दुकान, गाड़ी, सभी कुछ है आपके पास
फिर पहले कि तरह, क्यों नहीं हंसते हो।
पिता के खोने का गम, मां की बिगड़ती सेहत
भाई-बहनों, परिवार से, जुदा रहने का गम
बच्चों के भविष्य की चिंता, पति-पत्नी की बढ़ती उम्र
देश में बढ़ती, महंगाई, भ्रष्टाचार, परिवार का बढ़ता खर्च
चिंता बढ़ा, चिता तैयार कर रही है
क्या बताउ , उस मासूम को
जिसका बचपन, अभी शुरू हुई है।

ढूंढ़ता हुं, कहां खो गया, मेरा बचपन
बुढ़ापे की इस दहलीज पर।

......ललित 'सुमन' 

Friday 3 January 2014

देश ने देखा दिल्ली विधानसभा के अंदर का नजारा

2 जनवरी 2014, नववर्ष का दूसरा दिन, मौका अल्पमत की सरकार का विधानसभा के अन्दर विश्वास मत प्राप्त करने का..

नई दिल्ली। आम आदमी पार्टी को छः महीने का जीवन मिलने का साक्षी बनने का गौरव दिल्ली विधानसभा  को प्राप्त हो चुका है। इस सरकार को अब छः माह तक कोई गिरा नहीं सकता क्योंकि अविश्वास प्राप्त छः महीने के बाद ही इसके खिलाफ लाये जा सकते है, ऐसा संवैधानिक  प्रावधान है।
आम आदमी पार्टी के मंत्री मनीष सिसौदिया ने अपनी अल्पमत की सरकार के लिए, अपने 18 सूत्री  मांग के साथ विधानसभा सदस्यों के सामने विश्वास मत समर्थन का प्रस्ताव रखा और प्रोटेम स्पीकर मतीन अहमद ने विश्वास मत की कार्यवाही को आगे बढ़ाते हुए चर्चा शुरू करवाया।

भाजपा के विधानसभा में नेता डा. हर्षवर्धन ने आप और कांग्रेस पर करारा प्रहार किया और अरविन्द केजरीवाल व मनीष सिसौदिया की संस्था को विदेश से प्राप्त फंड की जांच कराने का मुद्दा  उठाया, डा. हर्षवर्धन  ने कांग्रेस को बार-बार भ्रष्ट कांग्रेस और आप को अनैतिक गठबंधन  करने को लेकर खिचाइ किया, उन्होंने विधानसभा को राजनैतिक मंच बनाने में भी पीछे नहीं रहे, वे यहां तक बोल गये कि किसी प्रकार का अनैतिक गठबंधन कर लिया जाय, नरेंद्र मोदी को प्रधानमंत्री बनने से कोइ रोक नहीं सकता। डा. हर्षवर्धन  काफी आक्रोशित नजर आ रहे थे. उन्होंने साफ शब्दों में कह दिया वे आम आदमी पार्टी के विश्वास मत के खिलाफ है। उन्होंने यहां तक कहा कि अरविन्द केजरीवाल ने बच्चों का कसम खाया था कि किसी से न समर्थन लेंगे न देंगे, फिर  ऐसी कौन सी विवसता  है कि वे कांग्रेस के समर्थन से सरकार बना रहे है।

कांग्रेस पार्टी की ओर से अरविन्दर सिंह लवली विश्वास मत पर अपनी पार्टी की सोच को बड़े ही तरीके से विधानसभा के अन्दर रखा और कहा कि उनकी पार्टी आम आदमी पार्टी की सरकार को विश्वास मत, तब तक जारी रखेगी, जब तक दिल्ली के विकास के लिए अपने घोषणा पत्र  के अनुसार यह सरकार काम करती रहेगी, जरूरत पड़ने पर कांग्रेस पांच साल तक समर्थन देगी लेकिन उन्होंने मुख्यमंत्री केजरीवाल से यह भी कहा कि कोइ भी फैसला जल्दबाजी में न करें, अफसरों के चंगुल में न फंसे, साथ ही कहा कि निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार की जांच भी होनी चाहिए।

अरविन्दर सिंह लवली ने भाजपा नेता डा. हर्षवर्धन को कहा कि आधी  सच्चाई  की जगह पूरी सच्चाई  बोले, गुमराह न करें। बंगारू लक्ष्मण, नितिन गडकरी व यदुरप्पा की पार्टी भ्रष्टचार की बात किस नैतिक अधिकार के साथ कर सकती है। अरविन्दर सिंह लवली ने यहां तक कहा कि सी.एम. इन वेटिंग मदन लाल खुराना, विजय कुमार मल्होत्रा, कुछ समय के लिए विजय गोयल फिर  डा.  हर्षवर्धन  जिस प्रकार रह गये, उसी प्रकार नरेंद्र मोदी भी पी.एम. इन वेटिंग बने रहेंगे।


रामवीर सिंह विधुरी ने कांग्रेस के कार्यकाल में हुइ भ्रस्टाचार  व उच्च न्यायालय द्वारा दिये गये फैसले की कइ बातें विधानसभा में उठाकर कांग्रेस को कठघरे में खड़ा करने का काम किया। जदयू के अकेले विधायक शोएब इकबाल ने आम आदमी पार्टी सरकार का बिना शर्त  समर्थन देते हुए भाजपा द्वारा उठाये गये एक, एक सवाल पर बारी बारी से भाजपा पर प्रहार करने का जो सिलसिला शुरू किया उसका अंत विधानसभा की गरिमा पर आघात के साथ खत्म हुआ।


भाजपा द्वारा काश्मीर का मुद्दा, अरविन्द केजरीवाल द्वारा बच्चों की कसम की बात सदन में उठायी गइ दी, शोएब इकबाल ने कहा कि जब बार-बार राम की कसम खाते रहे, कि मंदिर वही बनाएंगे, उस कसम का क्या हुआ, इस पर भाजपा के विधायक शोएब इकबाल का विरोध् करने लगे, बात कामनवेल्थ गेम में हुइ भ्रष्टाचार पर पहुंची, फिर हंगामा, विरोध् और अंत में एक, दूसरे को देख लेने और सांढ़ तक बात पहुंच गइ और शोएब इकबाल ने कोट  तक उतार दिया। प्रोटेम स्पीकार को कहना पड़ा सारा देश देख रहा है, सदन कपड़े उतारने की जगह नहीं है, विवाद बढ़ता देख मार्शल को बुलाना पड़ा और शोएब इकबाल को बैठा दिया गया।


भाजपा की ओर से तीन व कांग्रेस की ओर से दो विधायक ने विश्वास मत पर अपने विचार रखें। कांग्रेस के जयकिशन ने कांग्रेस सरकार द्वारा किये गये विकास कार्यो  पर प्रकाश डालते हुए रामवीर सिंह विधुरी  से कहा कि 81ए पर अगर कांग्रेस सरकार ने गलत कार्य किया था तो हजारों व्यकित को लेकर अरविन्दर जी को धन्यवाद देने वे क्यों पहुंचे थे। जयकिशन ने दो मिनट के अन्दर कइ सवालों का जबाव इस प्रकार दिया कि मुख्यमंत्री  अरविन्द केजरीबाल भी उनकी बात गम्भीरतापूर्वक सुनते देखे गये। भाजपा की ओर से चौहान ने आम आदमी पार्टी पर कइ सवाल उठाया और कहा कि इनके विधायकों के पास इतनी-इतनी दौलत चल-अचल है फिर ये आम आदमी कहां से है, आम आदमी होता है। रेहड़ी वाला, आम आदमी मजदूर है, आम आदमी पार्टी सिर्फ जनता को गुमराह करने का काम करती रही है। इस पर आम आदमी पार्टी के विधायक यहां तक मंत्री राखी बिड़ला ने भी उनका विरोध् किया और सभी विधायक काफी उत्तेजित नजर आये, लेकिन उन्हें मनीष सिसौदिया ने शांत कर दिया। मुख्यमंत्री  अरविन्द केजरीवाल ने सदन में भी अपनी बात, अपने चिर पिरचित अंदाज में रखा। जिस प्रकार रामलीला मैदान में शपथ ग्रहण के बाद जनता को सम्बोधित करते हुए उन्होंने रखा था उसी प्रकार विधानसभा में भी रखा और स्पष्ट रूप से कहा कि भ्रष्टाचारी को किसी भी कीमत पर नहीं बख्शा जायेगा। 18 सूत्री  कार्यक्रम दिल्ली के विकास में लागू किया जायेगा, साथ ही उन्होंने कहा कि भाजपा आम आदमी, सिर्फ झुग्गी झोपड़ी में रहने वाले को समझती है, जबकि उनकी नजर में वे तमाम लोग आम लोग है जो भ्रष्टाचार से प्रभावित रहे है और देश का विकास चाहते है, चाहे वह स्लम में रहते हो या ग्रेटर कैलाश में।


उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि वे आम आदमी पार्टी के लिए समर्थन नहीं मांग रहे उन्हें आम लोगों की समस्याओं के निदान के लिए, किये जाने वाले विकास कार्यों  के लिए समर्थन चाहिए। प्रोटेम स्पीकर मतीन अहमद ने कहा कि जिन्हें विश्वास मत का समर्थन करना है वे खड़े हो जाएं इस पर आम आदमी पार्टी के विधायक, कांग्रेस विधायक, जदयू विधायक खड़े हो गये जिनकी संख्या 37 थी, भाजपा और अकाली विधायक ने विश्वास मत का विरोध् किया और बैठे रहे। इस प्रकार विधानसभा के अन्दर सत्ता पक्ष, विपक्ष व जदयू विधायक के प्रत्येक कार्यशैली का सारा देश देखा।

Wednesday 1 January 2014

नववर्ष में भाजपा-कांग्रेस करें आत्ममंथन

नई दिल्ली। लोकसभा में विरोधी दल की नेता सुषमा स्वराज ने दिल्ली में भाजपा की हार व आप के बढ़ते कदम के लिए दिल्ली प्रभारी पर परोक्ष रूप से प्रहार किया है। सुषमा स्वराज ने मंच से कहा कि उन्होंने आप द्वारा सेंघ लगाने की ओर ध्यान आकृष्ट किया लेकिन इस पर ध्यान ही नहीं दिया गया।
 नेता विरोधी दल के इस ब्यान के बाद भाजपा में महाभारत मची हुई है। सुषमा स्वराज जमीन से जुड़ी नेत्री रही है और उन्हें अवश्य इस बात का अंदाजा चुनाव परिणाम से पूर्व हो गया होगा कि अरविन्द केजरीवाल की पार्टी जनाधार बढ़ा रही है।  सुषमा स्वराज ही नहीं देश की राजनीति पर पैनी नजर रखने वाला ‘‘मदर इंडिया पत्रिका ने अपने 10 नवम्बर 2013 के सम्पादकीय में साफ-साफ लिख दिया था कि’’  ‘‘भाजपा सत्ता के काफी करीब पहुंच चुका था, कांग्रेसी के सांस, भ्रष्टाचार और महंगाई के मुद्दे पर फूल रहे थे लेकिन सी.एम. इन वेटिंग के चक्कर में भाजपा पुनः काफी पिछड़ चुका है। जिसका अंदाजा उसे मतगणना के बाद हो जाएगा कि आपसी लड़ाई में पार्टी, सत्ता से कैसे दूर खिसक जाती है’’ अगर आपको विश्वास न हो तो।www.motherindiamagazine.com पर जाकर सम्पादकीय के नीचे से तीन लाइन अभी भी पढ़ सकते हैं।
 दिल्ली में भाजपा 43 से अधिक  सीट प्राप्त करने की स्थिति में थी लेकिन टिकट बंटवारे में हुई बंदरवांट, देर से टिकट का वितरण, जमीनी कार्यकर्ताओं  की उपेक्षा व अपने ही प्रदेश अध्यक्ष पर ईमानदार चेहरा के नाम पर प्रश्न चिन्ह लगाना उसके लिए घातक साबित हुआ है।
 आम आदमी पार्टी ने कांग्रेस को भ्रष्टाचार व मंहगाई के मुद्दे पर व भाजपा की आपसी लड़ाई, निगम में व्याप्त आकंठ भ्रष्टाचार को मुद्दा बनाकर सत्ता की दौर से बाहर करने में कामयाब रहा।
 आम आदमी पार्टी को 28 सीट तो बहुत कम मिली है, जिस प्रकार दिल्ली के युवा एवं महिलाएं संगठित होकर मतदान किया उसकी सीट 47 के आस-पास जाकर रूकती लेकिन कुछ सीटों पर आम पार्टी के प्रत्याशी अपना दावा सही ढ़ंग से पेश नहीं कर पाया, कुछ सीट पर मतददाताओं को लगा कि कहीं कांग्रेस चुनाव न जीत जाय इसलिए भाजपा उम्मीदवार के पक्ष में अंतिम समय में बटन दबा दिया।
 आम आदमी पार्टी आज की तारीख में कांग्रेस व भाजपा दोनों के लिए चुनौती बन चुका है, दिल्ली ही नहीं देश की जनता दोनों पार्टी की गतिविधियों  पर पैनी नजर रख रही है। भाजपा-कांग्रेस ने उसे घेरने या गिराने का प्रयास किया तो वह काफी नुकसानदायक साबित होगा। आम आदमी पार्टी को, दोनों दलों को पूरा मौका देना होगा, राजनीतिक अनुभवहीनता के कारण वह उलझती जायेगी और आम लोग उससे हद से अध्कि उम्मीद लगा बैठे हैं, उनका मोहभंग होगा फिर  वह अपने कारणों से गिरेगी।

कांग्रेस व भाजपा दोनों को आत्ममंथन करना चाहिए कि आखिर क्यों तीसरा दल बजूद में आया। निगम में भाजपा 7 वर्षों से शासन में है, कांग्रेस पन्द्रह वर्षों से दिल्ली सरकार में थी फिर  आम लोग क्यों नहीं संतुष्ट है। युवा व महिलाएं क्यों भाजपा व कांग्रेस का नाम सुनते ही दहाड़ उठती है, आखिर कारण क्या है।
 कांग्रेस के शासन में दिल्ली विकास अवश्य किया, लेकिन कांग्रेसी विधायक , मंत्री, संगठन न तो युवा व महिलाओं को अपने विकास कार्यों से अवगत करा सका, न ही निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार को मुद्दा बना सका। भाजपा और कांग्रेस दोनों के मुख्य कर्ताधर्ता आपस में खिचड़ी पकाते रहें , अपने  हेल्थ व वेल्थ को बढ़ाते रहे, आम जनता को मंहगाई व भ्रष्टाचार के हवाले कर दिया। भाजपा का पन्द्रह वर्षों की विपक्षी भूमिका भी आम लोगों के हीत में आवाज उठाने की जगह हेल्थ व वेल्थ बढ़ाने में रहा, निगम में व्याप्त भ्रष्टाचार खत्म करने के जितने दावे किये गये, भ्रष्टाचार उतना ही बढ़ता रहा। आंख बंद कर लेने से सच्चाई से मुंह नहीं मोड़ा जा सकता। 
इन्हीं शब्दों के साथ नववर्ष की बधाई ।   
  
ललित 'सुमन'