Monday 17 February 2014

सम्पादकीय:- उपराज्यपाल पर अब सारी जिम्मेदारी

दिल्ली विधानसभा  चुनाव परिणाम आने के साथ ही यह स्पष्ट हो चुका था कि दिल्ली की आवाम ने दिल्ली को बीच मझधार  में लाकर खड़ा कर दिया है और कांग्रेस-भाजपा को दरकिनार कर एक नइ पार्टी आप पर भी हद से अधिक भरोसा नहीं किया। भाजपा को 32, आप को 28 और कांग्रेस को सत्ता से दूर करते हुए 8 सीट पर समेट कर अपने आक्रोश की ज्वाला को भले शांत किया लेकिन सभी पार्टियों को अग्नि  परीक्षा देने के लिए विवश कर दिया।  दिल्ली के उपराज्यपाल डा. नजीब जंग ने बड़ी पार्टी के नाते भाजपा को आमंत्रित किया लेकिन भाजपा बहुमत नहीं होने की बात कह सत्ता बनाने से इंकार कर दिया। दूसरी बड़ी पार्टी आप को कांग्रेस ने समर्थन दिया लेकिन आप ने समर्थन पत्र  प्राप्त होने के बावजूद जनता से रायसुमारी की और सरकार बन गइ। उपराज्यपाल ने पद एवं गोपनीयता की शपथ आप मंत्री मंडल को दिलाकर अपने कर्त्तव्य  का पालन किया।
 49 दिनों के अंदर कइ घटनाक्रम घटित हुइ और तरह-तरह के मसले आमलोगों के सामने आये जो आज तक दिल्ली की जनता ने दूसरे प्रदेशों के संदर्भ में मीडिया के माध्यम  से देखा व सूना था लेकिन पहली बार वे अपने राज्य में अपने आंखों से देखा कि सत्ता और सत्ता संचालन के दरम्यान दिल्ली की सरकार के सामने किस-किस प्रकार की समस्याएं आती है और एक मुख्यमंत्री  को किस प्रकार संघर्ष करके दिल्ली की जनता के हीत में विकास कार्य का निष्पादन करना पड़ता है। दिल्ली में पांच वर्ष भाजपा ने शासन किया लेकिन उसे तीन मुख्यमंत्री  बनाने पड़े। मदन लाल खुराना के त्याग व तपस्या को दरकिनार करना भाजपा को इतना भारी पड़ा कि आज तक वह सत्ता वापसी के लिए खून-पसीना बहा रही है लेकिन दिल्ली की जनता का दिल नहीं जीत पा रही है। मदन लाल खुराना ने हवाला कांड डायरी में नाम आने पर आडवाणी के साथ पद त्याग कर अपने नैतिकता व उच्च चरित्रा का परिचय दिया, लेकिन भाजपा ने अपने उस कर्मयोगी को दरकिनार कर दिल्ली की जनता का विश्वास खो दिया।
 कांग्रेस को दिल्ली की जनता ने मौका दिया। शीला दीक्षित के नेतृत्व में कांग्रेस की सरकार तीन बार बनी दिल्ली ने विकास किया, जो साफ नजर आ रहा है, लेकिन इस बार दिल्ली की जनता ने न सिर्फ  कांग्रेस को आठ सीट पर समेट दिया बल्कि  मुख्यमंत्री  शीला दीक्षित को पढ़े-लिखे वर्ग  ने नकार दिया और उन्हें पराजय का मुंह देखना पड़ा, कारण स्पष्ट था। दस वर्ष शीला दीक्षित सरकार ने जमकर काम किया लेकिन तीसरी बार चुनाव जीतने के उपरांत कांग्रेस ने युवा वर्ग  के लिए, आमलोगों के लिए वह कार्य नहीं किया जिसकी उम्मीद दिल्लीवासी कर रहे थे। मंहगाइ-भ्रष्टाचार के साथ कांग्रेस की आपसी गुटबाजी से दिल्ली का आम जनता त्रस्त रही, उसका सूनने वाला कोइ नहीं था, भाजपा-कांग्रेस के नेता अपने-अपने क्षेत्र  में सांठ-गांठ कर लिया, निगम में भाजपा लुटती रही, प्रांत में कांग्रेस, बेचारी जनता पिसती रही, तत्कालीन उपराज्यपाल, तेजेन्द्र खन्ना भी कांग्रेस व भाजपा के कुछ विधायक  को अपने पक्ष में कर आम जनता की हित से अधिक शीला सरकार को कमजोर व भाजपा-कांग्रेस नेताओं को संरक्षण देते रहे। दिल्ली की जनता आखिर कहां अपनी फरियाद लेकर जाये। वह पिसती रही, खामोश रही, अन्दर-अन्दर सुलगती रही और जब अन्ना हजारे का आन्दोलन हुआ सड़कों पर उतर आयी। अरविन्द केजरीवाल ने विश्वनाथ प्रताप सिंह की तरह जनता के आक्रोश को समझा और राजनीतिक आखाड़े में कुद गये।
 सच्चाइ यही है इसे जिसको जिस रूप में मुल्यांकन करना है, विवेचना करना है करता रहे। भाजपा ने मदन लाल खुराना को दरकिनार कर गुटबाजी के माध्यम  से सत्ता तो प्राप्त कर, सत्ता सुख भोग लिया लेकिन कभी सशक्त विपक्ष की भूमिका अदा नहीं किया अगर वह सशक्त विपक्ष की भूमिका अदा किया होता तो 2009 के चुनाव में वह सत्ता में वापस आ सकती थी। भाजपा पुन: बार-बार वही गलती दुहरा रही है, कभी विजेन्द्र गुप्ता को आगे करती है, कभी विजय गोयल को आगे करती है, कभी हर्ष वर्धन  को आगे करती है। खुराना के बाद अगर भाजपा में प्राण अगर किसी ने फूंका  तो वह विजेन्द्र गुप्ता है, जुनियर-सीनियर की लड़ाइ में भाजपा जनता के दिलों में विश्वास स्थापित करने में नाकामयाब रही। क्या कारण है दो वर्ष पुरानी एक युवाओं की टीम इतनी-पुरानी कांग्रेस व भाजपा को चुनौती देने में न सिर्फ कामयाब रही बलिक 28 सीट प्राप्त कर दिल्ली में 49 दिन सरकार चला कर पुन: कांग्रेस-भाजपा को कठघड़े में खड़ा कर एक नइ पारी की शुरूआत करने पूरे देश में निकल पड़ी है। दिल्ली की जनता या देश की जनता सब कुछ देख रही है, वह सब कुछ समझती है, जो पुराने लोग हैं वे ये जानते होंगे कि जब देश आजाद हुआ था तो कइ नेता चुनाव के पक्ष धर नहीं थे लेकिन नेहरूजी ने उस वक्त चुनाव कराया, जनता पर भरोसा किया और देश की जनता भले, भूखे पेट रहे, वस्त्र न हो, इलाज के पैसे न हो लेकिन अपने राष्ट्र के स्वाभिमान के लिए अपना बलिदान देने में कभी पीछे नहीं रहा है, इतिहास इस बात का गवाह है आज भारत एक विशाल लोकतांत्रिक राष्ट्र है तो इसका प्रमाण यही है।
 अरविन्द केजरीवाल एवं उनका मंत्रिमंडल  नये लोगों का संगठन है, पहली बार सभी चुनकर आये थे, क्या हमारे पुराने विधयकों, मंत्रियों का यह दायित्व नहीं बनता था कि वे उन्हें यह बताते की एक राज्य को सुचारू रूप से चलाने के लिए बजट की आवश्यकता होती है, विकास की गति बनाये रखने के लिए इस प्रकार की योजना बनानी पड़ती है, लेकिन सरकार बनने के साथ ही राजनीति शुरू हो गइ, सरकार को घेरो, बदनाम करो, उलझाओ। अगर पुराने नेता राजनीति इसे कहते है तो आम आदमी पार्टी ने भी वही किया जो वे करते है तो फिर इसमें गलत क्या है। अन्य नेता मीडिया व समाचार पत्रों  में सुर्खियां  बनाने के लिए मीडिया का उपयोग करे तो सही, आम पार्टी बोले तो गलत, आप संविधन की उपेक्षा करो तो सही, आम पार्टी करे तो गलत आखिर ऐसा क्यों। गलत तो गलत है चाहे वह कोइ करे। अरविन्द केजरीवाल ने विधानसभा  के अंदर कांग्रेस भाजपा पर सीधा  आरोप लगाया कि अम्बानी से भाजपा कांग्रेस दोनों चंदा लेती है उसके खिलाफ एफआर्इआर का उन्होंने आदेश दिया, इसलिए दोनों दल मिलकर जनलोकपाल बिल सदन में नहीं आने दे रहे। यह पूरी तरह राजनीतिक विचार कहा जा सकता है लेकिन यही आरोप तो दिल्ली में भाजपा, कांग्रेस सरकार पर व केन्द्र में भाजपा, कांग्रेस की सरकार पर इसी तरह की अनेकों आरोप बेगैर सिर-पैर की लगाती रही है। विश्वनाथ प्रताप सिंह ने जिस बोफोर्स घोटाला के नाम पर कांग्रेस को सत्ता से हटाया था वही बोपफोर्स तोप कारगिल युद्ध में भारतीय सेना का मस्तक ऊंचा किया था।
 सिख दंगा का मामला बीस वर्षों  से दिल्ली में 36 रहा था, भाजपा ने भी शासन किया, अकाली उनके मित्र  है लेकिन उन्होंने एसआर्इटी क्यों नहीं बनवाया। क्या भाजपा इसका जवाब दिल्ली की जनता को देगी। केजरीवाल ने राजनीति ही किया हो लेकिन सिख विरादगी के घाव पर मरहम तो लगाया, आपने ऐसा करना अपना कर्त्तव्य  क्यों नहीं समझा। पहले भी उपराज्यपाल थे, डा. नजीब जंग ही एसआर्इटी के लिए क्यों?  दिल्ली के उपराज्यपाल डा. नजीब जंग के पास एक बेहतरीन मौका है। इश्वर जब किसी से अति प्रसन्न होता है तो उसके सामने चुनौती पेश करता है ताकि वह अपनी दक्षता व क्षमता का प्रयोग कर इतिहास में अपने नाम दर्ज करा ले। डा. नजीब जंग को खुदा ने यह अवसर दिया है, वे राष्ट्रपति के दिल्ली में उत्तराधिकारी है, भूमि, पुलिस व कानून व्यवस्था सभी कुछ उनके पास है। विगत 20 वर्षों  में दिल्ली में जिनते भ्रष्टाचार हुए है उसकी निष्पक्ष जांच कराकर दिल्ली की जनता के दिल व दिमाग में यह बैठा दें कि कानून अभी जिंदा है। दिल्ली में जितने भूमि घोटाले हुए है, डीडीए प्लाट, आदि पर भू-माफियाओं  ने कब्जा कर रखा है उसे मुक्त कराकर इतिहास रच दें, दिल्ली की सड़कों पर और अपने घरों में लोग यह महसूस करें कि कोइ उनकी सुरक्षा के लिए सजग है तो क्या दिल्ली में राम-राज्य नहीं आ जायेगा।  उपराज्यपाल डा. नजीब जंग प्रशासनिक अधिकारी, रंगमंच के कलाकार, शिक्षाविद होने के साथ-साथ दिल्ली के उपराज्यपाल है और इश्वर ने उन्हें राजनीतिक दक्षता का परिचय देने का अवसर दिया है यह किसी कुदरती करिश्मा से कम नहीं है। वर्ष-2014-15 का बजट, बिजली कम्पनियों को पैसा, जल बोर्ड के विकास  प्रोजेक्ट, दिल्ली विश्वविधालय में गर्वनिगबडी विधायक  फंड, आदि मुददें रोजमर्रा का मुददा है लेकिन सबसे बड़ी बात है दिल्ली वासियों के दिल में कानून के प्रति विश्वास व संविधन के प्रति आस्था का विश्वास कायम करना। यह बेहतरीन मौका डा. नजीब जंग को समस्याओं के निदान के साथ इतिहास रचने के लिए कुदरत का तोहफा है।
ललित "सुमन"